बेरोज़गारी दर ख़तरनाक, पर्दा क्यों?
45 साल में इतनी बेरोजगारी कभी न थी
नोटबंदी के बाद बढ़ गयी बेरोजगारी
युवाओं में 18% से ज्यादा बेरोजगारी
शहरी महिलाओं में 28% तक बेरोजगारी
आंकड़ें अभी और भी हैं। मगर, ये बातें हम आपको क्यों बता रहे हैं। ये आंकड़े तो सत्यापित हैं ही नहीं। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने मीडिया के सामने आकर मीडिया में छपी इन ख़बरों के बारे में कह डाला है कि ये सत्यापित नहीं हैं।
बेरोजगारी पर आंकड़ों को दबाने के आरोप और नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की कथित रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बीच नीति आयोग सफाई लेकर सामने आ गया। आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने देश में बेरोज़गारी 45 साल में सबसे ज्यादा होने से जुड़े आंकड़े के बारे में कहा है कि यह ‘सत्यापित नहीं है’।
मगर, क्या नीति आयोग की इस सफाई से सच बदल जाएंगे। क्या सरकार का बचाव करना ही नीति आयोग का काम नहीं है? सरकार अपना बचाव खुद क्यों नहीं कर सकती? क्या नीति आयोग का काम अखबार की ख़बर को या उस ख़बर के प्रभाव को कम करना है? निश्चित रूप से एक बार फिर यह बात साबित हुई है कि संस्थानों की स्वायत्तता पर बुरी तरह से हमला जारी है। नीति आयोग की सफाई से आयोगी की गरिमा बढ़ी नहीं, गिरी है।
जब सरकारी कर्मचारी या पदाधिकारी आंकड़े दबाने की बात कहते हुए इस्तीफ़ा देते हैं, तब नीति आयोग क्यों नहीं उन कर्मचारियों का बचाव करते हुए सामने आता है। अगर बचाव न भी करे, तो कम से कम उनकी बातों को संज्ञान में तो ले।
आश्चर्य है कि नीति आयोग यह नहीं बता सका कि सत्यापित आंकड़े हैं कहां! इस बारे में उसने कहा है ‘आंकड़ों को प्रोसेस’ किया जा रहा है। आखिर नीति आयोग को सफाई देने की जरूरत क्यों पडी? क्या इसलिए कि देश को बताया जा सके कि 45 साल में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी वाली बात मिथ्या है?
मगर, अफसोस कि इस मकसद में भी नीति आयोग सफल नहीं रहा। आयोग बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी ख़बर को खारिज नहीं कर पाया। ख़ारिज़ तब माना जाता जब वह कहता कि प्रकाशित आंकड़े गलत हैं। नीति आयोग की बात से मतलब ये निकलता है कि अख़बार में जो आंकड़े सामने आये हैं वह आधिकारिक तब तक नहीं कहे जा सकते जब तक कि सत्यापित ना हो।
बिजनेस स्टैंडर्ड ने भी इस बात का दावा नहीं किया है कि आंकड़े सत्यापित हैं। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार की बात पर गौर करें-
“सरकार ने डेटा (नौकरी को लेकर) जारी नहीं किया है और ये अभी प्रोसेस किया जा रहा है। जैसे ही डेटा तैयार हो जाएगा हम उसे जारी कर देंगे।”
देश वही जानना चाहता है जिसके बारे में नीति आयोग इंतज़ार करने को कह रहा है। एक आंकड़ा जो अक्टूबर में जारी हो जाना चाहिए था, वह जनवरी तक सामने नहीं आया है- इस पर सफाई देने के बजाए नीति आयोग ये कहने के लिए सामने आ गया कि ये आंकड़े ‘वेरीफ़ायड’ नहीं हैं यानी सत्यापित नहीं हैं। बहुत ख़ूब!