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कुम्भ से अयोध्या कूच : राम मंदिर पर आर-पार?

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21 फरवरी 2019. धर्म संसद ने तय कर दी है तारीख।

साधु-संत लेंगे कमान।

बसंत पंचमी के दिन प्रयाग से अयोध्या करेंगे प्रस्थान।

अब होकर रहेगा मंदिर निर्माण?

कुम्भ में तीन दिन चली बैठक के बाद साधु-संतों ने 30 जनवरी को सविनय अवज्ञा आंदोलन के पहले चरण का एलान किया है। 30 जनवरी की तारीख इसलिए अहम है क्योंकि इसी दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का शहादत दिवस है।

शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती इस सविनय अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व करेंगे। धर्म संसद की घोषणा से साफ है कि राम मंदिर के शिलान्यास की तारीख भले ही 21 जनवरी 2019 हो, लेकिन लक्ष्य हासिल करने के लिए यह साधु-संतों की ओर से आंदोलन की शुरुआत है। घोषणा के मुताबिक हिन्दुओं की मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यह आंदोलन का पहला चरण है। यह आंदोलन इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि इस बार साधु-संत राम मंदिर के लिए लाठी-गोली खाने के लिए और जेल जाने तक को तैयार हैं।

धर्मादेश में कहा गया है,

“जब तक मंदिर निर्माण नहीं हो जाता, तब तक हर हिंदू का यह कर्तव्य होगा कि उसे गिरफ्तारी देनी हो तो गिरफ्तारी दें। यह आंदोलन तब तक चलेगा जब तक रामजन्मभूमि हिंदुओं को सौंप नहीं दिया जाता और उस पर हम मंदिर का निर्माण नहीं कर लेते।”

एक और धर्म संसद विश्व हिन्दू परिषद की ओर से अयोध्या में 31 जनवरी को बुलायी गयी है जिसमें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी हिस्सा ले रहे हैं। लेकिन साधु-संतों ने ये साफ कर दिया है कि गली-गली धर्मसंसद नहीं हो सकती। धर्मसंसद बुलाने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ शंकराचार्य को है।

साधु-संतों का विरोध केंद्र सरकार के प्रति भी दिखा है। धर्मसंसद के आयोजक अविमुक्तेश्वरानन्द ने कहा है,

“जो सरकार काशी और प्रयाग में सैकड़ों मंदिरों को तोड़कर नष्ट कर चुकी हो, उस सरकार से मंदिर निर्माण की उम्मीद करना मूर्खता के सिवाय कुछ नहीं है। परम धर्म संसद में दुनिया भर से आए संतों और सनातन धर्म के प्रतिनिधियों ने ये तय कर लिया है कि 21 फरवरी को हर हाल में अयोध्या पहुंचना है। हमें यदि रोकने की कोशिश की जाएगी तो भी हम वहां पहुंचेंगे।”

सरकार से तकरार के कारण राम मंदिर आंदोलन नया मोड़ लेता दिख रहा है। साधु-संत इस आंदोलन को अपने हाथों में लेने की कोशिश कर रहे हैं वहीं एक और कोशिश अयोध्या में हो रही है। चुनाव के समय यह मुद्दा गरमा गया है। वहीं सवाल उठ रहे हैं कि क्या सुप्रीम कोर्ट में चल रही प्रक्रिया के बीच राम मंदिर आंदोलन की तारीख तय कर देना जायज है? क्या यह सुप्रीम कोर्ट की अवमानना नहीं है?

साधु-संतों ने सरकार को अध्यादेश के जरिए भी राम मंदिर निर्माण का आदेश दिया था, लेकिन केंद्र सरकार ने उस पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। नवंबर 2018 में दिल्ली के ताल कटोरा स्टेडियम में हुई इस धर्मसंसद में एलान किया गया था,

“राममंदिर के लिए सरकार कानून लाए या अध्यादेश, यही है संतों का धर्मादेश।”

कुम्भ में हुई धर्मसंसद में साधु-संतों ने इस बात के लिए भी मोदी सरकार की आलोचना की कि वह आरक्षण के लिए कानून बना सकती है लेकिन धर्मादेश का पालन नहीं कर सकती। ऐसी सरकार से उम्मीद करना बेकार है।

साधु-संतों का राम मंदिर के लिए शिलान्यास का धर्मादेश यानी 21 फरवरी ऐसा समय है जब आम चुनाव में दो महीने भी बाकी नहीं रह जाएंगे। ऐसे में इस मुद्दे पर राजनीति अभी और गरम होने वाली है। आम चुनाव में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा सिर चढ़कर बोलने वाला है। मगर, सबसे बड़ा सवाल ये है कि कहीं साधु-संत और उनकी धर्मसंसद राजनीतिक रूप से इस्तेमाल तो नहीं हो रही है? क्या धर्म संसद का धर्मादेश नवंबर के धर्मादेश की तरह टांय-टांय फिस्स तो नहीं होने वाला है?

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