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BJP के लिए न आए दोबारा 2018, Cheers! Happy New Year

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This year will not end

Like last year at all – Morgan Harper Nichols

अमेरिकी संगीतकार मॉर्गन हार्बस निकोलस की ये पंक्तियां हैं। बीजेपी नेता राम माधव ने साल के आखिरी इतवार में लिखे अपने आर्टिकल की शुरुआत इन्हीं पंक्तियों से की। आशय साफ है बीते साल की तरह यह साल न बीते। 2018 का साल बीजेपी के लिए बहुत बुरा साल रहा, इस बात को ‘द बीजेपी न्यू चैलेंज’ नाम से लिखे अपने आलेख में राम माधव ने ईमानदारी से कबूल किया है।

ओपरा विन्फ्रे के कथन से उन्होंने अपने आलेख का अंत किया है, Cheers to the new year and another chance for us to get it right. मतलब ये कि नये साल का स्वागत है जो हमारी गलतियों को ठीक करने के लिए मौका भी है।

राजनीतिक मोर्चे पर मिली मायूसी- राम माधव

राजनीतिक मोर्चे पर राम माधव ने 2018 को 2017 से बदतर माना है। 2018 में मार्च आते-आते बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो गयीं। उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर में दो महत्वपूर्ण उपचुनाव पार्टी हार गयी। कर्नाटक में बेहतर प्रदर्शन करने के बावजूद बीजेपी सरकार नहीं बना सकी। नवंबर-दिसंबर में हुए 5 राज्यों के चुनाव में भी बीजेपी को गुड न्यूज़ नहीं मिली। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।

इससे पहले 2017 में बीजेपी ने 7 चुनाव लड़े, 6 में जीत मिली। पार्टी को सिर्फ पंजाब में हार का सामना करना पड़ा। बाकी राज्यों में मणिपुर, गोवा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, गुजरात और हिमाचल में जीत मिली। 2017 का अंत गुजरात और हिमाचल में जीत के साथ हुआ। 2018 की शुरुआत भी शानदार तरीके से हुई जब पार्टी ने फरवरी में हुए चुनाव में पूर्वोत्तर में तीन राज्यों में सरकार बनायी। त्रिपुरा में वामदलों से 25 साल की सत्ता छीन ली, तो नगालैंड में पहली बार बीजेपी सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरी।

राम माधव ने लिखा है कि साल 2018 दुखी होने के साथ-साथ खुश होने का भी है। आर्थिक मोर्चे पर देश ने अच्छा किया। विकास दर स्थिर बनी रही। अगले साल के लिए मजबूत सम्भावनाएं हैं। दुनिया में भारत का मान बढ़ा। पड़ोसी देशों के साथ संबंध बेहतर हुए। भारत को इंटरनेशनल सोलर एलायंस के रूप में पहला अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय गुरुग्राम में मिला। तीन तलाक को लेकर सरकार ने अपने दायित्वों को पूरा किया।

राम माधव मानते हैं कि आम चुनाव में अपने चुनावी भविष्य को संवारने के लिए बीजेपी के पास महज चार महीने हैं। इस दौरान बीजेपी को विपक्ष के हाथों से पहल छीननी होगी। अपनी लय दोबारा हासिल कर होगी। वे लिखते हैं कि 2014 में बीजेपी के पास तीन चीजें थीं-

2014 में बीजेपी की तीन ताक़त

  • नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता
  • मजबूत संगठन
  • सरकार की असफलता

राम माधव के अनुसार 5 साल बाद अब भी पार्टी के साथ दो चीजें बनी हुई हैं। प्रधानमंत्री की लोकप्रियता बनी हुई है और वे परम्परागत एंटी इनकम्बेन्सी पर भारी हैं। 2017 में भी नरेंद्र मोदी ने अपने कंधे पर बीजेपी को ढोया है। हार के बावजूद अगर कर्नाटक, राजस्थान और मध्यप्रदेश में बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया है तो उसके पीछे चुनाव अभियान में नरेंद्र मोदी की अथक मेहनत वजह रही है। उत्तर पूर्व में जीत का श्रेय राम माधव पूरी तरह से नरेंद्र मोदी को ही देते हैं। वे कहते हैं कि नरेंद्र मोदी जनता के लिए उम्मीद बने हुए हैं और पार्टी के लिए ऐसेट भी।

राम माधव का दावा है कि लोग अब भी मानते हैं कि नरेंद्र मोदी के विजन और मेहनत का विकल्प नहीं है। जनता में असंतोष की बात तो वे स्वीकार करते हैं लेकिन लिखते हैं कि ऐसा इसलिए है कि जनता को उम्मीद बहुत ज्यादा है। लोगों को तुरंत सब कुछ चाहिए और बीजेपी को समय मिला सिर्फ 5 साल। वे कहते हैं कि शायद यही वजह है कि नेता काम से ज्यादा चुनाव जीतने पर जोर देते हैं। वे चुनाव जीतने के लिए लोकलुभावन तरीके आजमाते हैं चाहे इसके जो दुष्परिणाम हों।

राम माधव अमेरिकी चिंतक जेम्स फ्रीमैन क्लार्क को उद्धृत करते हैं,

A politician looks at the next election; a statesman looks at the next generation-  James Freeman Clarke

आशय ये है कि एक नेता अगला चुनाव देखता है जबकि एक सभ्य पुरुष अगली पीढ़ी देखता है। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राजनीतिक कम और सभ्य पुरुष ज्यादा मानते हैं। राम माधव का कहना है कि नये साल में नयी चुनौती है। जो लोग नाराज़ दिख रहे हैं उन्होंने नरेंद्र मोदी को ख़ारिज़ नहीं किया है। बल्कि एकजुट, समृद्ध, मजबूत और गौरवशाली भारत के लिए उनकी एकमात्र उम्मीद नरेंद्र मोदी ही हैं।

फिर भी बीजेपी नेता विपक्ष को हल्के में नहीं लेने के लिए आगाह भी करते हैं। उन्होंने लिखा है कि पार्टी को अपनी मशीनरी चुनाव के ख्याल से दुरुस्त करनी चाहिए। बीजेपी के कार्यकर्ताओं की खासियत है कि वे देश में अच्छाई के लिए समर्पित कार्यकर्ता हैं। इसलिए उन्हें किसी पेशेवर तरीके से नहीं हांका जा सकता। बीजेपी के लिए उनका फॉर्मूला है-

Centralised inspiration, but decentralised initiative.

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