गेमचेंजर साबित होगा राहुल का ब्रह्मास्त्र?
राहुल ने चल दिया ब्रह्मास्त्र। अचूक रहेगा निशाना? 2019 के जंग में धराशायी होंगे विरोधी? क्या मिट जाएगी देश से गरीबी? राहुल का वादा है। अब कोई देश में नहीं रहेगा गरीब। हर गरीब की मासिक आमदनी 12 हज़ार रुपये रहेंगे सुनिश्चित। जितनी कम पड़ेगी रकम, पूरा करेंगे हम…अगर बन जाएगी सरकार हमारी।
5 करोड़ परिवार के 25 करोड़ लोगों पर यानी 20 फीसदी आबादी पर राहुल ने डाला है डोरा। अगर 2014 के लोकसभा चुनाव पर नज़र डालें तो कांग्रेस को मिले थे 10 करोड़ 69 लाख 35 हज़ार 942 वोट, जबकि बीजेपी ने बटोरे थे 17 करोड़ 16 लाख 60 हज़ार 230 वोट।
सवाल ये है कि 20 करोड़ लोगों को फायदा पहुंचाने वाली गरीब आबादी को रिझाने की यह न्यूनतम आमदनी की गारंटी करने वाली योजना क्या गेमचेंजर साबित होगी? गरीबों को कैसे विश्वास दिलाएंगे राहुल गांधी? उन तक कैसे बात पहुंचाएगी कांग्रेस? क्या नेताओं पर भरोसा करेंगे मतदाता? क्योंकि पिछले चुनाव में भी वे सुन चुके हैं 15 लाख का वादा, जिस बारे में चुनाव के बाद कहा गया कि वह था एक जुमला!
क्या सब्सिडी हटाकर होगा ‘अंतिम प्रहार’?
देश में 2 लाख 67 हज़ार करोड़ की सब्सिडी
सब्सिडी खत्म कर करना होगा 93 हज़ार करोड़ का इंतज़ाम
क्या सब्सिडी हटाकर होगा गरीबी पर ‘अंतिम प्रहार’? देश में 2 लाख 67 हज़ार करोड़ की चल रही है सब्सिडी। अगर इसे ख़त्म कर दिया जाता है तो करना होगा महज 93 हज़ार करोड़ की रकम का इंतज़ाम। मगर, ये तो धोखा होगा! अगर, नहीं तो विकल्प क्या होगा?
राज्यसभा में केंद्र सरकार ने जो आंकड़े अप्रैल 2018 में रखे थे उसे देखें तो बैंकों ने कुल 2 लाख 41 हज़ार 911 करोड़ रुपये माफ किए थे। इनमें से ज्यादातर बैड लोन थे। जब इतनी बड़ी रकम का इस्तेमाल ऋणमाफी में हो सकता है तो न्यूनतम आय की गारंटी में क्यों नहीं? यह भी ध्यान देने योग्य बात हैं कि उद्योगपतियों पर बैंकों की मोटी रकम बकाया है। केवल तीन उदाहरणों पर गौर करें-
उद्योगपतियों का बैंकों पर बकाया
पहला उदाहरण : देश में 50 बड़े उद्योगपतियों पर 8.35 लाख करोड़ रुपये का बकाया
दूसरा उदाहरण : 31 दिसम्बर 2018 तक 21 सरकारी बैंकों के 8.26 लाख करोड़ रुपये के लोन डूबते दिख रहे हैं।
तीसरा उदाहरण : देश में सिर्फ 12 डिफॉल्टर्स के कुल NPA 1 लाख 75 हज़ार करोड़ रुपये का है।
कुल 18 लाख 36 हज़ार करोड़ रुपये डूबने के कगार पर हैं। इस रकम से गरीब परिवारों के लिए न्यूनतम आय की गारंटी 5 साल के लिए हो सकती है। लेकिन फिर आगे क्या होगा? बगैर निश्चित आमदनी के गरीबी कैसे मिटेगी? रुपये के अवमूल्यन से, महंगाई से कैसे जूझेगी गरीब जनता? क्या गरीबी पर अंतिम प्रहार करने वाली योजना में इन सवालों के जवाब हैं?