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MP नहीं PM बनने निकले हैं दिग्विजय

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16 साल है मिसाल। 2003 के बाद 2019. तब राघोगढ़ अब भोपाल। ‘दिग्विजय’ को निकले हैं दिग्विजय। सिंह की मांद में पहुंचा है सिंह। चुनाव लड़ रहे हैं राजा दिग्विजय। MP नहीं, इस बार चुनेगा भोपाल PM,

इस बार राघोगढ़ से नहीं, जहां की प्रजा आज भी उन्हें मानती है राजा। बल्कि, दिग्विजय ने रण का मैदान चुना है भोपाल..जो है देश के हृदयप्रदेश की राजधानी। यहां से अगर दिग्विजय का राजनीतिक संन्यास ख़त्म होता है और वे इस मौके को जीत में बदल लेते हैं तो उनके लिए अपने नाम को सार्थक करने का ये बड़ा अवसर होगा। जी हां, वे राजनीति की दुनिया में हो सकते हैं दिग्विजय।

MP नहीं PM बनने निकले हैं दिग्विजय

आप इन्हें अतिशयोक्ति यानी बढ़ा-चढ़ाकर कही गयी बात न समझें।दिग्विजय-कमलनाथ की जोड़ी आज देश की तेज तर्रार जोड़ियों में से है। यह जोड़ी नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी से भी किसी मायने में दमदार है।  बस सच ने चुनाव से महीने भर पहले ही यह बता दिया था कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ होंगे क्योंकि रणनीति बना चुके थे दिग्विजय।

एक बार फिर दिग्विजय-कमलनाथ की जोड़ी ने चल दी है चाल। एक ने कठिन सीट पर चुनाव लड़ने की तान छेड़ी, दूसरे ने उसे लपक लिया मानो वे इसी तान का कर रहे थे इंतज़ार। ये सब बहुत कुछ ऐसे हुआ, मानो लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोडी संगीत दे रही हो, दोनों को एक-दूसरे का सबकुछ पता हो। भोपाल को जीतने का मतलब उत्तर प्रदेश में वाराणसी जीतने से कहीं बड़ा है।

सोचिए चुनाव बाद की तस्वीर

जब किसी पार्टी के पास नहीं होगा बहुमत। दोनों ओर दरक रहा होगा गठबंधन। नये गठबंधन की सम्भावनाएं चढ़ रही होंगी परवान। किसी अल्पमत सरकार का दिल्ली के सिंहासन को होगा इंतज़ार। कुछ अंदर से, कुछ बाहर से समर्थन की चाहिए होगी बैसाखी। तब कौन होगा कांग्रेस सबसे बड़ा सांसद? गांधी परिवार से इतर सबसे बड़ा सांसद। सांसद दिग्विजय से बड़ा भी कोई होगा कांग्रेसी! दो-दो बार मध्यप्रदेश यानी MP के CM. अब यही Ex CM बनने को खड़ा मिलेगा PM.

आप इस बात को जरूर मानेंगे कि बहुमत स्पष्ट नहीं दिखने पर गांधी परिवार का कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री बनने के लिए जोड़-तोड़ करने आगे नहीं आएगा। तब कांग्रेस को ज़रूरत किसी पीवी नरसिम्हाराव की होगी, या फिर डॉ मनमोहन सिंह की। और, तब कांग्रेस के पास दिग्विजय सिंह से इतर कोई पसंद ही नहीं होगी।

कमलनाथ कर्ज भी चुकाएंगे। सीएम बनाने का कर्ज। देश की कोई राजनीतिक पार्टी नहीं है जिसके प्रमुखों से कमलनाथ की नजदीकी नहीं है। ऐसे निजी संबंध तो खुद दिग्विजय के भी हैं मगर राजा अपने लिए किसी से मांगता नहीं। कमलनाथ उनके लिए मांगेंगे। और, इस तरह जुटाएंगे बहुमत।

ऐसा नहीं है कि बीजेपी के रणनीतिकारों को ऐसी किसी सम्भावना का अंदाजा नहीं है। पूरा अंदाजा है। यही वजह है कि भोपाल का मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री बनाम पूर्व मुख्यमंत्री होने जा रहा है। जी हां, नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी अपने मुकाबले किसी जोड़ी को प्रतिष्ठित होने से रोकने के लिए आखिरी दम तक कोशिश जारी रखेंगे। शिवराज का दांव भोपाल में चलकर जहां वे विरोधी खेमे के दिग्विजय को साधने की कोशिश करेंगे, वहीं किसी अप्रिय परिणाम के आने पर शिवराज को भी साध चुके होंगे। पहले सीएम से पैदल किया, फिर विपक्ष का नेता नहीं बनने दिया। अब लोकसभा के चुनाव में हार के बाद शिवराज की सियासत की बलि ले चुकी होगी मोदी-शाह की जोड़ी। मगर, तब तक एमपी बनने निकले दिग्विजय भोपाल से पीएम मटेरियल बनकर सामने होंगे। जी हां, यकीन मानिए MP नहीं PM बनने निकले हैं दिग्विजय।

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