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गांधी या मोदी – किनका सपना है कांग्रेसमुक्त भारत?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस मुक्त भारत पर अड़े हैं। अपनी सरकार के आखिरी बजट सत्र के समापन भाषण में भी वह उसी रट पर डटे दिखे। वे ये कहते दिखे कि यह उनका नहीं, महात्मा गांधी का सपना था। नरेंद्र मोदी ने कहा कि वे महात्मा गांधी के सपने को ही साकार कर रहे हैं।

ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी को समझा ही नहीं। हिन्दुस्तान की राजनीति में महात्मा गांधी ने कुछ चाहा हो और वह नहीं हुआ हो, ऐसा कोई उदाहरण टिका ही नहीं। बात को समझने के लिए तीन उदाहरण काफी हैं-

हमेशा गांधी की जिद पर झुकी कांग्रेस

  • एक, जब कांग्रेस ने उनकी इच्छा के विरुद्ध सुभाष चंद्र बोस को अपना अध्यक्ष चुन लिया, तो महात्मा गांधी ने खुद को कांग्रेस से ऐसे अलग किया कि खुद सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ने को मजबूर हो गये।
  • दूसरा, जब कम्युनिल अवार्ड को अम्बेडकर स्वीकार कर रहे थे, तो महात्मा गांधी अनशन पर बैठ गये। नतीजा भीम राव अम्बेडकर को अपनी जिद छोड़नी पड़ी। पृथक निर्वाचन की मांग को भूलना पड़ा। यह ‘पूना पैक्ट’ कहलाया।
  • तीसरा, जब आजाद हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री को तय करने का वक्त आया तो पूरी कांग्रेस सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम के साथ थी। मगर, महात्मा गांधी ने जवाहरलाल नेहरू के लिए सरदार पटेल को ही राजी कर लिया। खुद गुजराती होकर भी एक गुजराती यानी सरदार वल्लभ भाई पटेल को पात्रता रखने के बावजूद प्रधानमंत्री बनने नहीं दिया। यह महात्मा गांधी की ताकत थी।

महात्मा गांधी भारत को कांग्रेसमुक्त करना चाहते और नहीं कर पाते- ऐसा हो ही नहीं सकता था। आश्चर्य है कि नरेंद्र मोदी भी महात्मा गांधी के प्रदेश गुजरात से हैं लेकिन वो ऐसी बात कह रहे हैं जिसे कोई गुजराती कभी मान ही नहीं सकता।

महात्मा गांधी की हत्या हो गयी। उनसे आखिरी बार उनके घर मिलने गये व्यक्ति बल्लभ भाई पटेल ही थे। पटेल की महानता देखिए कि गांधीजी की हत्या के बाद उन्होंने पंडित नेहरू से अपने सारे मतभेद भुलाकर एकजुट होकर काम करने का संकल्प दिखलाया।

पटेल के लिए असहनीय था गांधीमुक्त भारत

गांधीमुक्त भारत सरदार पटेल के लिए असहनीय था। ऐसी कोशिश करने वाले संगठन पर उन्होंने तुरंत प्रतिबंध की घोषणा कर दी। उनका गुस्सा इस बात पर था कि गांधीजी की हत्या के बाद इस संगठन के लोगों ने खुशियां मनायी थीं, मिठाइयां बांटी थी।

गांधी खुद अगर कांग्रेसमुक्त भारत की बात कहते, तो शायद देश गांधीमुक्त नहीं होता। उन्होंने कांग्रेसमुक्त भारत की इच्छा नहीं रखी, इसलिए ऐसी इच्छा रखने वालों ने देश को गांधीमुक्त कर डाला। यही सत्य है। पता नहीं, नरेंद्र मोदी इस सत्य को क्यों नहीं कबूल करना चाहते? क्यों वे गांधीजी के नाम से झूठ बोलने पर आमादा हैं?

महात्मा गांधी ने अपनी हत्या से पहले 27 जनवरी 1948 को एक कॉलम लिखा था जो 2 फरवरी 1948 को प्रकाशित हुआ था। उस पर नज़र डालें

-“भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय राजनीतिक संस्था है और उसने अहिंसक तरीके से अनेक लड़ाइयां लड़ने के बाद आजादी प्राप्त की है। उसे मिटने नहीं दिया जा सकता। कांग्रेस केवल तभी समाप्त हो सकती है, जब राष्ट्र समाप्त हो जाए।’’

अपनी मृत्यु से ठीक पहले वाली रात महात्मा गांधी ने कांग्रेस की बैठक में विमर्श के लिए जो बातें लिख छोड़ीं उसका ज़िक्र भी जरूरी है,

“अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी मौजूदा संस्था को भंग करने और नीचे लिखे नियमों के अनुसार ‘लोक सेवक संघ’ के रूप में उसे विकसित करने का निश्चय करती है।”

यही वो पंक्ति है जिसे गांधीजी की वसीयत के तौर पर प्रचारित किया गया। यह पंक्ति कांग्रेस की कार्यसमिति और अधिवेशन में विचार के लिए था और इसकी भाषा भी उसी के अनुरूप है। कांग्रेस को ही यह तय करना था कि वह खुद को लोकसेवक संघ के रूप में विकसित करने का निश्चिय करे। न महात्मा गांधी की यह वसीयत है और न ही यह उनका विचार जिसे उन्होंने थोपने की कोशिश की हो।

इस विषय पर और भी विस्तार से चर्चा हो सकती है कि महात्मा गांधी के कहने का वास्तव में मतलब क्या था, मगर नरेंद्र मोदी ने जिस तरीके बतौर प्रधानमंत्री संसद में कांग्रेस को मुक्त करने की बात कही है वह नफ़रत की राजनीति बढ़ाने वाली है। गांधी के नाम पर संसद में इससे बड़ा झूठ और कुछ नहीं हो सकता कि कांग्रेस मुक्त भारत की ठेकेदारी उन्होंने किसी गैर कांग्रेसी के लिए छोड़ दी थी जिसे नरेंद्र मोदी पूरा कर रहे हैं।

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