लोकसभा चुनाव 2019 : क्या हैं Veg और Non-Veg मुद्दे
2019 के आम चुनाव का मुद्दा क्या है? इस सवाल का मतलब ये है कि आखिर वो कौन सी बात है जिसके आधार पर आम लोग वोट करने वाले है। किसी अर्थ में इसका उत्तर बहुत मुश्किल है। मगर, इसे आसान बनाया जा सकता है इन्हें श्रेणियों में बांटकर। श्रेणी सिर्फ मुद्दों की नहीं बनेगी, मतदाताओँ की भी बनेगी। ठीक उसी तरह जैसे कोई वेजिटेरियन है तो उसकी पसंद अलग है, और अगर नॉन वेजिटेरियन है तो उसकी पसंद अलग है। फिर भी कुछ बातें कॉमन है जो दोनों तरह के लोगों की पसंद का आधार हैं।
रोज़गार और खेती
रोज़गार और खेती ऐसे मुद्दे हैं जो पूरे देश में यानी उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम समान रूप से असर रखते हैं और वोटरों के लिए वोट देने का आधार बनने वाले हैं। रोज़गार कम हुए हैं, बल्कि छिन गये हैं। वहीं, खेती फायदे की नहीं रह गयी है। इन मुद्दों पर वर्तमान सरकार से असंतोष या उनका किया हुआ काम वोटरों को प्रभावित करेगा।
राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद
राष्ट्रीय गौरव और मान-सम्मान के साथ जुड़ा है। इस पर वर्तमान सरकार का परफॉर्मेंस वोटरों पर असर डालेगा। मगर, वो वोटर जो बेरोज़गार हैं या जिनके रोज़गार छिन गये हैं उनकी प्राथमिकता में यह मुद्दा आए, यह जरूरी नहीं है। भूखी आबादी और भूखे किसानों के लिए भी यह मुद्दा बहुत असरकारक नहीं होगा। शहरी आबादी के लिए ज़रूर यह बड़ा मुद्दा है। इसके अलावा सैनिकों के परिवार और गांवों में भी यह मुद्दा अहम रहेगा।
क्या सोचते हैं एससी-एसटी-ओबीसी?
देश के 76 फीसदी एससी-एसटी और ओबीसी क्या सोचते हैं यह भी महत्वपूर्ण है।
एससी-एसटी और ओबीसी से जुड़े लोगों के अधिकार किस राजनीतिक विचार वाली पार्टी या गठबंधन में सुरक्षित रहने वाले हैं। यह भी अहम बात है। कोई राष्ट्रीय पार्टी -इनका प्रतिनिधित्व करती नहीं दिख रही है। इसलिए ये बंटे हुए हैं। मगर, बीते दिनों में एससी-एसटी ने जो असंतोष दिखाया है उससे ऐसी उम्मीद की जा रही है कि यह वोट में भी तब्दील होगा।
‘नॉन वेजिटेरियन’ मुद्दे
अगर नॉन वेजिटेरियन मुद्दों को देखें तो इसमें मॉब लिंचिंग, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण, दलितों पर अत्याचार जैसी घटनाएं आती हैं। यह देश के बड़े हिस्से को प्रभावित करती हैं। इसलिए किसी पार्टी या सरकार के लिए नकारात्मक राय बनने पर नुकसान और इस समस्या से निपटने में अच्छी छवि के कारण सकारात्मक राय बनने पर फायदा हो सकता है।
स्थिर सरकार है वेजिटेरयिन मुद्दा
वेजिटेरियन मुद्दों में सबसे प्रमुख है स्थिर सरकार। आम वोटरों को यह धारणा खूब लुभाती है। सबसे बड़ी पार्टी और सबसे बडे गठबंधन का नेतृत्व करने की वजह से इसका फायदा बीजेपी को मिलने के पूरे आसार हैं। वहीं दक्षिण के राज्यों में जहां बीजेपी का प्रभाव कम है और क्षेत्रीय दल हैं, वहां राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर कांग्रेस को इसका फायदा मिल सकता है जिसके बारे में सम्भावना है कि वह वैकल्पिक गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर सकती है। अन्य मुद्दों में शिक्षा का विकास, सबको साथ लेकर चलने की क्षमता, बदलाव लाने की योग्यता व क्षमता भी शामिल हैं।
रोज़गार का सपना दिखाना भी वेजिटेरयन मुद्दा है और वोटरों पर इसका असर भी पड़ता है। विगत चुनाव में नरेंद्र मोदी ने साल में 2 करोड़ का वादा किया था, इस बार पहले ही साल में राहुल ने 22 लाख रिक्तियां भरने का वादा किया है। यह मुद्दा चुनाव में असर डालेगा।
गरीब और गरीबी भी बड़े मुद्दे
गरीबों के अकाउन्ट में न्यूनतम आदमनी कैश डालना हो या सब्सिडी के रूप में उनके खाते में रकम..इन मुद्दों का लाभ भी कांग्रेस और बीजेपी को उनके काम और वादों के हिसाब से मिलेगा। गरीबी पर वार 72 हज़ार इसी मायने में राहुल का गेमचेंजर वादा माना जा रहा है।
जातीय गठबंधन अपन आप में भारतीय राजनीति का महत्वपूर्ण फैक्टर है। इसलिए यह भी अपनी भूमिका जरूर निभाएगा।
पार्टी या गठबंधन का नेता कौन है, इससे भी वोटिंग पैटर्न पर फर्क पड़ता है। नरेंद्र मोदी ब़ड़े नेता के तौर पर पिछले 5 साल में विकसित हुए हैं। वहीं, राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी सम्भाले हुए दो साल भी नहीं हुए हैं। यह फैक्टर भी वोटरों को लुभाता है या विमुख करता है।