Sat. Apr 27th, 2024

Malya विवाद : Jaitley बने बलि का बकरा?

Featured Video Play Icon

Vijay Malya escaped, but the real scapegoat in the Malya case is Arun Jaitley. लंदन से चल रही है भारत की राजनीति। बुरे फंसे अरुण जेटली। अकेले पड़े अरुण जेटली। माल्या ने किया जेटली को टेंशन का टोपी ट्रांसफर। दोबारा वित्तमंत्री नहीं बनते तो नहीं फंसते जेटली। किन्हें चुभने लगे  थे स्वस्थ जेटली? क्या जेटली को अपनों ने फंसाया? क्या वित्तमंत्री के रूप में जेटली की पारी का होने वाला है अंत? कहीं राजनीति से ही रिटायर करा देने की साजिश तो नहीं! 

ऐसे और भी हेडलाइन्स बन सकते हैं। आप समझ सकते हैं कि अरुण जेटली से विजय माल्या की मुलाकात का खुलासा और उसके बाद की ख़बरों में कितना पोटेन्शियल है। ख़बर ये नहीं है कि राहुल गांधी ने अरुण जेटली का इस्तीफा मांगा या कि दूसरे दलों ने भी यही सुर अलापा। ख़बर ये भी नहीं है कि अरुण जेटली ने विजय माल्या से मुलाकात की थी या नहीं।

असली ख़बर है कि वो कौन है जो अरुण जेटली को फंसाना चाहता है? वो कौन है जो जेटली की पारी का अंत करना चाहता है? वो कौन लोग हैं जो अरुण जेटली को ‘बलि का बकरा’ बना चुके हैं? 

ख़बर ये है कि अरुण जेटली को विरोधियों ने नहीं, अपनों ने फंसाया है। राजनीति हिन्दुस्तान में हो रही है लेकिन की जा रही है लंदन से। यह अनायास नहीं हुआ है कि विजय माल्या को मार्च 2016 की बात सितम्बर 2018 में याद आ गयी। यह भी अनायास नहीं है कि कांग्रेस नेता पीएल पुनिया को अपने चश्मदीद होने की बात अब याद आयी है।

कहते हैं कि ‘वक्त इंसान पे ऐसा भी कभी आता है राह में छोड़ के साया भी चला जाता है’। अरुण जेटली के लिए यही वक्त अभी बीत रहा है। आप ये बात जान कर चौंक जाएंगे कि बीजेपी ने भी अरुण जेटली को अकेला छोड़ दिया है। आप कहेंगे कि ये क्या बकवास है! टीवी पर देख लीजिए। बीजेपी नेताओं को, प्रवक्ताओं को सुन लीजिए- सबके सब अरुण जेटली के साथ खड़े हैं। 

जी हां, दिख यही रहा है कि बीजेपी के नेता जेटली के लिए मरने-मारने पर उतारू हैं। मगर, सच्चाई इससे जुदा है। अरुण जेटली ने सफाई दी है कि विजय माल्या के साथ जो भेंट हुई, उसे मुलाकात नहीं कह सकते क्योंकि न तो वह पहले से तय थी और न ही वे ऐसी किसी मुलाकात के लिए तैयार थे। चलते-चलते मिल लेना और उसे मुलाकात कह देना सही नहीं हो सकता। अब आप बताइए कि किस बीजेपी नेता ने जेटली के इस पक्ष को मजबूती से देश के सामने रखा? 

बीजेपी के किसी भी नेता ने अरुण जेटली का बचाव किया हो, इसका उदाहरण कोई नहीं दे सकता। इन नेताओं ने सिर्फ कांग्रेस पर सवाल दागे हैं। कांग्रेस पर सवाल दागना और अरुण जेटली का बचाव करना, दोनों अलग-अलग बातें हैं। 

सवाल ये है कि एक राज्यसभा का सांसद संसद के सेंट्रल हॉल में अपने ही साथी सदस्य से मुलाकात करेगा या नहीं? कर सकता है या नहीं? विजय माल्या को संसद के बजाए कानून की गिरफ्त में होना चाहिए था, यह बात जरूर है। मगर, यह सवाल तो पूरी बीजेपी और सरकार के प्रमुख नरेन्द्र मोदी से सबसे पहले बनता है। सिर्फ अरुण जेटली से क्यों? सेंट्रल हॉल में वित्तमंत्री को माल्या ने रणनीतिक तरीके से पकड़कर बात कर ली, तो जेटली गुनहगार हो गये? तब तो नहीं हुए, जब मुलाकात हुई! अब लंदन से माल्या एक पुरानी बात को, जो रहस्योद्घाटन किसी एंगल से नहीं है, बोल रहे हैं तो जेटली गुनहगार हो गये?

विजय माल्या सुरक्षित कैसे वहां तक पहुंचे, पहुंच गये तो घर कैसे लौटे, क्यों नहीं उन्हें गिरफ्तार किया गया…ये सारे सवाल सत्ताधारी बीजेपी से भी है और तब चुप रह गये कांग्रेसी और गैर कांग्रेसी विपक्ष से भी है। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके लिए सवालों के घेरे में नहीं आते? राहुल ने ये सवाल जरूर उठाया है मगर सबके निशाने पर अरुण जेटली हैं। पता नहीं क्यों, न कांग्रेस और न ही दूसरी पार्टियों में किसी ने भी अब तक प्रधानमंत्री का इस्तीफा तक नहीं मांगा है।

बीजेपी के लिए पर्दे के पीछे से रणनीतिकार माने जाते हैं सुब्रहमण्यम स्वामी। जिस स्वामी को अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी कैबिनेट के लायक नहीं समझा था, उन्हीं स्वामी को नरेन्द्र मोदी सरकार ने लुटियंस जोन में सरकारी बंगला दे रखा है। राजनीति में कोई भी कदम अकारण नहीं होता। 

लंदन में विजय माल्या ने एक बम फोड़ा कि उन्होंने भारत छोड़ने से पहले अरुण जेटली से मुलाकात की थी, उन्हें बैंकों के मामले निपटाने की योजना बतायी थी। तो सुब्रह्मण्यम स्वामी ने दिल्ली में दूसरा बम फोड़ दिया। उन्होंने ट्वीट कर कहा है

24 अक्टूबर, 2015 को माल्या के खिलाफ जारी लुकआउट नोटिस को ‘ब्लॉक’ से ‘रिपोर्ट’ में शिफ्ट किया गया जिसकी मदद से विजय माल्या 54 लगेज आइटम लेकर भागने में फरार हुआ।

विजय माल्या ने संसद के सेंट्रल हॉल में वित्त मंत्री अरुण जेटली को बताया था कि वह लंदन के लिए रवाना हो रहा है।

अंत में, अरुण जेटली की उम्र नवजोत सिंह सिद्धू वाली नहीं है कि बीजेपी से अलग हटकर अब वे कोई राजनीति कर सकें। उनके लिए तो अपमान का घूंट पीकर बीजेपी में ही राजनीति को प्रणाम कर लेने का वक्त आ गया लगता है। वे अपनों के बनाए जाल में ही बुरी तरह से घिर चुके हैं। अब आप उन्हें बलि का बकरा कह लीजिए या फिर कुछ और।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *