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ममता का नारा ‘2019 बीजेपी Finish’

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New Slogan of Mamata : 2019 BJP finish

मोदी विरोधी राजनीति की मजबूत आवाज़ हैं ममता बनर्जी। ताल ठोंकने में वक्त नहीं लगता और जब ताल ठोंकती हैं, तो लड़ाई कभी यूं ही ख़त्म नहीं होती। असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स यानी एनसीआर पर ममता ने जो रार ठानी है, उस बहाने उन्होंने मोदी विरोधी राजनीति को नयी ऊंचाई तक पहुंचाने का एक प्रयास किया है।

दिल्ली आकर दो दिन तक जो राजनीतिक मुलाकात ममता ने की है उसके नतीजे के तौर पर ममता ने एक नारा दे डाला है – ‘2019 बीजेपी फिनिश’. ममता बनर्जी ने दिल्ली में एनडीए के तीन नेताओं से मुलाकात की। बीजेपी के भीष्म पितामह लालकृष्ण आडवाणी, शिवसेना नेता संजय राउत और बीजेपी में बगावती बोल छेड़ते रहने वाले शत्रुघ्न सिन्हा शामिल हैं। इसके अलावा ममता ने यशवन्त सिन्हा से भी मुलाकात की।

आडवाणी से तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने 15 मिनट तक अकेले में बात की और उनसे आशीर्वाद लिया। यह कहना मुश्किल है कि ‘जहां बीजेपी वहां आडवाणी’ की स्थिति के बावजूद क्या आज के भीष्म पितामह ने 2019 के लिए ममता को आशीर्वाद दिया या नहीं? मगर, ‘2019 बीजेपी फिनिश’ के मकसद की खातिर बीजेपी के संस्थापक नेता लालकृष्ण आडवाणी से ही आशीर्वाद लेना विरोधी की ताकत पर हमला बोलने जैसा है।

ममता की यह नयी रणनीति है। ममता ने यह भी साफ कर दिया है कि ‘2019 बीजेपी फिनिश’ के लिए नेतृत्व सामूहिक होगा और प्रधानमंत्री की रेस में वे खुद नहीं हैं। एक तरह से निस्वार्थ राजनीतिक पहल करने का संदेश ममता ने दिया है। इसी भावना के साथ मोदी विरोधी 10 राजनेताओं से मुलाकात कर ममता ने मिशन 2019 को नया आयाम देने की कोशिश की है। यह कोशिश भविष्य की सियासत के लिहाज से भी रणनीतिक साबित हो सकती है। इस बार ममता ने सोनिया के साथ-साथ राहुल गांधी से भी मुलाकात की है। इसके अलावा अहमद पटेल, गुलाम नबी आज़ाद, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा, समाजवादी जया बच्चन, अरविन्द केजरीवाल, रामजेठमलानी से भी वह मिलीं।

ममता ने एनआरसी के मसले को इस रूप में पेश किया है कि जो बीजेपी के वोटर हैं उनके नाम तो इस लिस्ट में हैं लेकिन जो बीजेपी विरोधी हैं उन्हें लिस्ट से बाहर कर दिया गया है। मगर, सच्चई यही है कि एनआरसी जैसे मुद्दे पर असम में गोलबंदी हो सकती है, पश्चिम बंगाल में भी हो सकती है मगर देश में ऐसी गोलबंदी खुद मोदी विरोधी भी शायद ही चाहें। इसका कारण ये है कि घुसपैठिए के नाम पर राजनीतिक ध्रुवीकरण बीजेपी के लिए एनर्जी टॉनिक साबित होगा। यही वजह है कि कांग्रेस इस मुद्दे पर उतना उत्साह नहीं दिखा रही है।

कांग्रेस की प्रतिक्रिया उतनी भर है जिससे मोदी विरोधी राजनीति में वह खुद अलग-थलग ना पड़ जाए। ऐसे में ‘2019 बीजेपी फिनिश’ का नारा मोदी विरोध की राजनीति को कितना ऊंचा उठा पाएगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। मगर, इस नारे के तहत अगर समाजवादी अखिलेश, बहुजन समाजवादी मायावती, माई के लाल लालू-तेजस्वी समेत दूसरी पार्टियां भी एकजुट होंगी तो एक उम्मीद जरूर पैदा होती है। पर, ये सवाल बना रहेगा कि मोदी विरोध की राजनीति को क्या बीजेपी के भीतर से भी कोई समर्थन मिलने जा रहा है?

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