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मनोहर पर्रिकर : जिनके सामने मौत को भी नाको चने चबाने पड़े

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मनोहर पर्रिकर आखिरकार ज़िन्दगी की जंग हार गये। नहीं, नहीं, नहीं…उन्होंने तो ज़िन्दगी को जीया, कभी ज़िन्दगी के लिए लड़ाई नहीं लड़ी। मौत ने ज़रूर मनोहर पर्रिकर से लड़ाई ठानी थी। 2018 के फरवरी महीने में मौत ने पर्रिकर से पंगा लिया था। बीते एक साल में मौत उन्हें लगातार ललकारती रही, मगर मानो पर्रिकर ने इस लड़ाई में उलझना ही उचित नहीं समझा। वे जीते रहे ज़िन्दगी। ज़िन्दगी को काम से जोड़ा। काम को जिम्मेदारी से और ज़िम्मेदारी को गोवा की जनता से। उनकी हर सांस गोवा के लिए आती रही, जाती रही…और मौत उनसे दूर जाती रही।

मगर, मृत्यु से बड़ा सच दुनिया में कुछ नहीं होता। मृत्यु के समक्ष इंसान को हारना ही पड़ता है। मनोहर पर्रिकर ने मृत्यु को लम्बा इंतज़ार कराया…क्योंकि वे ज़िन्दगी के साथ जुड़े रहे। ऐसे जुड़े रहे कि सही मायने में गोवा की जनता मनोहर पर्रिकर को याद रख सकेगी…ज़िन्दगी के साथ भी, ज़िन्दगी के बाद भी।

बीते एक साल में अस्पतालों ने, डॉक्टरों ने मनोहर पर्रिकर को उलझाए रखा, मगर वह हमेशा इन सब से खुद को झटककर ज़िन्दगी को जीने के लिए निकल पड़ते। मानो उन्हें मानवीय इलाज से ज्यादा खुद पर भरोसा हो। मौत को सामने देखकर मुस्कुराने वाले कितने होते हैं। मुंबई के लीलावती अस्पताल के सर्जिकल ऑन्कॉलजी डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉ. पी जगन्नाथ ने पर्रिकर को कुछ इस रूप में याद किया,

जीवन भर मुस्कुराते रहे पर्रिकर

जब वह अस्पताल में भर्ती थे, तो पीएम मोदी उन्हें देखने आए। प्रधानमंत्री बेहद परेशान थे कि उनके अहम सहयोगी को यह गंभीर बीमारी हुई है। पर्रिकर ने मुस्कुराते हुए पीएम मोदी से कहा कि वह सिर्फ गोवा के लोगों की सेवा करना चाहते हैं।”- डॉ पी जगन्नाथ, चेयरमैन, सर्जिकल ऑन्कॉलजी डिपार्टमेंट

मनोहर पर्रिकर में गोवा के लोगों की सेवा का जज्बा अंतिम समय तक रहा। कभी मुम्बई के लीलावती अस्पताल से भाग आते कि उन्हें गोवा विधानसभा का बजट पेश करना है, तो कभी अमेरिका में अस्पताल के बिस्तर से ही कैबिनेट की मीटिंग करने लगते या फिर अफसरों-कर्मचारियों को निर्देश देने लग जाते।

यहां तक कि डॉक्टर मनोहर पर्रिकर को एम्स के आईसीयू में भेज देते, मगर चेतना लौटते ही पर्रिकर कहते कि उन्हें गोवा जाना है। आखिरकार उनके घर को ही अस्पताल बना दिया गया।

अब घर में भी उन्हें बेचैनी होने लगी। वे घर से बाहर निकलकर नाक में पाइप लगी हुई अवस्था में ही कार्यस्थल का निरीक्षण करने निकल पड़ते।

दरअसल, बचपन से ही आरएसएस से जुड़े, मनोहर पर्रिकर पहली बार 1994 में पणजी से विधायक चुने गये। उन्होंने चार बार गोवा के मुख्यमंत्री का पदभार सम्भाला। 2000-2005 के बीच दो बार और फिर 2012 और 2017 में भी पर्रिकर ने यह जिम्मेदरी निभाई। वे 2016-17 में देश के रक्षामंत्री रहे। 2014 से 2017 तक वे राज्यसभा के सदस्य रहे।  सबसे ख़ास बात ये कि मुंबई आईआईटी से 1978 में ग्रैजुएट हुए पर्रिकर देश के पहले आइआइटियन मुख्यमंत्री बने थे।                                                             

 

पर्रिकर ज़िन्दगी को जीते रहे, कभी ज़िन्दगी के लिए जंग नहीं लड़ी। हां, मौत ज़रूर पर्रिकर से लड़ती रही। जिन्दगी की जंग में मनोहर पर्रिकर की हार नहीं हुई। यहां तो वे विजेता बनकर उभरे, मौत ने जरूर उन्हें हराया, मगर इसके लिए भी मौत को नाकों चने चबाने पड़े। मनोहर पर्रिकर की 63 साल की ज़िन्दगी दुनिया के लिए उदाहरण बन चुकी है। उन्हें धरती के हर सपूत का सलाम।

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