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संघ को छेड़ेंगे नहीं, कर्मचारियों को छोड़ेंगे नहीं!

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मध्यप्रदेश में सरकारी कर्मचारी सकते में हैं। कमलनाथ सरकार के मंत्री उन्हें धमका रहे हैं। आरएसएस की शाखाओं में शरीक हुए तो उनकी खैर नहीं।

धमका रहे हैं मंत्री

सरकारी कर्मचारियों को खुद ही समझ जाना चाहिए कि सरकार की क्या मंशा है। दंड भोगने से अच्छा है वे आरएसएस की शाखा में न जाएं।– सज्जन वर्मा, कैबिनेट मंत्री, मध्यप्रदेश

कमलनाथ सरकार से सवाल

  • शिकायत कर्मचारियों से है या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से?
  • क्यों उन्हें संघ की शाखा में जाने से रोका जा रहा है?
  • शिकायत संघ से है तो सज़ा सरकारी कर्मचारियों को क्यों?

कांग्रेस ने घोषणापत्र के रूप में जो वचन पत्र पेश किया था, उसमें संघ की शाखाओं में सरकारी कर्मचारियों के जाने पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गयी थी। आश्चर्य है कि चुनाव आयोग ने भी इस पर आपत्ति नहीं जतायी।

संघ पर बैन नहीं लगेगा- कमलनाथ

आश्चर्य इस बात का भी है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ खुद आरएएसएस पर प्रतिबंध लगाने की बात से इनकार कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारों के बीच कहा है,

‘‘हमने कभी नहीं कहा कि हम आरएसएस पर प्रतिबंध लगाएंगे। न हमारी ऐसी मंशा है। मैंने या कांग्रेस पार्टी ने कभी नहीं कहा कि हम आरएसएस पर प्रतिबंध लगायेंगे।”

संघ को शाखाएं लगाने की छूट – कमलनाथ

मगर, वे अगले ही क्षण ये भी कहते हैं कि

‘‘सरकारी स्थानों को छोड़कर आरएसएस को शाखाएं लगाने की पूरी छूट है।”

अगर ऐसा है तो सरकारी कर्मचारियों को शाखाओं में जाने के नाम पर क्यों धमकाया जा रहा है?

कानूनन अगर बात करें तो सरकारी कर्मचारियों को केवल राजनीतिक दलों से दूरी रखनी है। वे किसी राजनीतिक दल के सदस्य भी नहीं हो सकते। यही वजह है कि ये कर्मचारी राजनीतिक दलों से संबद्ध ट्रेड यूनियन संगठनों से तो जुड़े रहते हैं लेकिन राजनीतिक दलों से नहीं। वे सीपीआई के एटक, कांग्रेस के इंटक, बीजेपी के हिन्द मजदूर सभा जैसे संगठनों के सदस्य हो सकते हैं, हड़ताल कर सकते हैं, जुलूस-प्रदर्शन भी कर सकते हैं लेकिन यही कर्मचारी वामपंथी, कांग्रेस या बीजेपी जैसे राजनीतिक दलों के झंडे लेकर नहीं घूम सकते।

मगर, आरएसएस का दावा है कि वह राजनीतिक संगठन नहीं है। हालांकि यह कहना मुश्किल है इस संगठन का स्वरूप क्या है। क्या यह सांस्कृतिक संगठन है? क्या यह धार्मिक संगठन है? ऐसे सवाल पूछे जाते रहे हैं लेकिन कभी इसका जवाब नहीं मिलता।

सरकारी कर्मचारी को पूरा हक है कि वे सवाल करें

सरकारी कर्मचारियों को चाहिए जवाब

  • जब प्रधानमंत्री और केंद्रीय कैबिनेट के सदस्य आरएसएस से जुड़े रह सकते हैं तो वे क्यों नहीं?
  • हाल-फिलहाल तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और मंत्री संघ से जुड़े हुए थे तो वे क्यों नहीं ऐसा कर सकते हैं?

आरएसएस पर कई बार प्रतिबंध लगाए गये हैं। कभी महात्मा गांधी की हत्या के नाम पर, तो कभी अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बहाने। कभी सिमी से इसकी तुलना की जाती है तो कभी आइसिस से। मगर, कभी आरएसएस पर प्रतिबंध की मांग पर उनके विरोधी अदालत नहीं जाते। संघ पर प्रतिबंध लगना चाहिए या नहीं, इसका फैसला अदालत से बाहर नहीं हो सकता। राजनीति के इसी दोहरे चरित्र की सज़ा सरकारी कर्मचारियों को भी भुगतनी पड़ रही है।

आरएसएस में मौखिक नियम-कानून

  • कोई भी बन सकता है सदस्य
  • शाखा में शामिल हों, बन जाएं सदस्य
  • नहीं रहता शाखाओं का कोई रिकॉर्ड
  • सदस्यों का नहीं रहता कोई रिकॉर्ड

आरएसएस ऐसा संगठन है जिसके नियम-कानून मौखिक अधिक हैं। कोई भी इसका सदस्य बन सकता है। सिर्फ शाखा में शामिल होने भर से कोई व्यक्ति आरएसएस का सदस्य हो जाता है। वहीं, शाखाओं का कोई रिकॉर्ड तक नहीं रखा जाता। यानी सदस्यों का भी कोई रिकॉर्ड नहीं होता।

जवाब आरएसएस को भी देना होगा कि आखिर यह कैसा संगठन है जो अपने क्रियाकलापों, सदस्यों तक का लेखा-जोखा नहीं रखना चाहता। अगर यह संगठन राजनीतिक नहीं है तो राजनीतिक मुद्दों में इसकी रुचि कैसे होती है? क्या यह बात किसी से छिपी हुई है कि बीजेपी प्रधानमंत्री का चेहरा किसे बनाए, यह भी आरएसएस तय करता है?

अगर संघ को अपनी विश्वसनीयता बरकरार रखनी है तो उसे अपनी स्थिति भी साफ करनी होगी। अन्यथा संघ के नाम पर राजनीति होती रहेगी और बेचारे सरकारी कर्मचारी बलि का बकरा बनते रहेंगे। मगर, किसी चुनी हुई सरकार से पूछा जाने वाला यह सबसे बड़ा सवाल है कि जब वे आरएसएस पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते, तो कर्मचारियों पर क्यों? क्या इसलिए कि वह संघ की तरह राजनीतिक रूप से ताकतवर नहीं हैं?

 

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