निर्भया के गुनहगार : यमराज क्यों लौट रहे हैं बारम्बार?
एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं…चार बार डेथ वारंट…
पहला डेथ वारंट
फांसी का समय
22 जनवरी सुबह 7 बजे
दूसरा डेथ वारंट
फांसी का समय
1 फरवरी सुबह 6 बजे
तीसरा डेथ वारंट
फांसी का समय
3 मार्च सुबह 6 बजे
चौथा डेथ वारंट
फांसी का समय
23 मार्च सुबह 5.30 बजे
माना कि निर्भया के साथ हुआ गुनाह नाकाबिले माफी है, माना कि निर्भया के मां-बाप अपनी बेटी के गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए तिल-तिल कर तड़प रहे हैं…मगर चार-चार डेथ वारंट से जो सवाल उठते हैं क्या उससे मुंह मोड़ा जा सकता है?
निर्भया केस में अब तक परिजन और उनके साथ खड़ा देश न्याय मांग रहा था, मगर अब निर्भया के गुनहगार भी न्याय मांगते नज़र आ रहे हैं..
निर्भया के गुनहगारों के साथ गुनाह किसने किया? खुद कानून ने यह गुनाह किया है।
हिन्दुस्तान में डेथ वारंट का मतलब होता है फांसी…समय भी मुकर्रर होता है। इसकी पूरी प्रक्रिया होती है। डेथ वारंट शुरू होते ही मौत का इंतज़ार शुरू हो जाता है…फांसी पर चढ़ने जा रहे कैदी के साथ अलग किस्म का व्यवहार शुरू हो जाता है…उसके खान-पान बदल जाते हैं…मनोवैज्ञानिक कंसल्टेंसी शुरू हो जाती है…परिजनों से अंतिम मुलाकात करायी जाती है…अंतिम ख्वाहिश तक पूछ ली जाती है…इतना ही नहीं मौत से पहले डमी फांसी का भी आयोजन होता है। मरने वाले के वजन के मुताबिक बोरी भर ली जाती है…फिर डमी को फांसी दी जाती है…फांसी की रस्सी बनने से लेकर जल्लाद तक निश्चित किए जाते हैं…समूची प्रक्रिया का ट्रायल होता है। इस दौरान कैदी भी कालकोठरी तक का दौरा करता है। उसके मुंह ढंके होते हैं। यानी अगर फांसी पर चढ़ने जा रहे कैदी के हिसाब से सोचें तो डेथ वारंट के बाद से उस पर अमल की तारीख और समय तक के बीच हर पल वह मौत की आहट और ख़ौफ के बीच ज़िन्दा रहता है। इसे ज़िन्दा रहना नहीं कहें तो बेहतर है क्योंकि ये सारे पल मौत से भी खौफनाक होते हैं।
अब जरा सोचिए। जो कैदी एक नहीं चार-चार बार डेथ वारंट के दौर से गुजरा हो, उसे यह सज़ा किस कानून के तहत मिल रही है…पहले ही डेथ वारंट में अगर उन्हें फांसी हो गयी होती, तो बारम्बार उन्हें मरना तो नहीं पड़ता। निर्भया के गुनहगारों को बारम्बार मारने का अधिकार अदालत को कानून देता है क्या? दुनिया की किसी भी अदालत को ऐसा क्रूर व्यवहार करने का क्या हक है?
हालांकि यह स्थिति सजा के खिलाफ मौजूद अपील के अधिकार के कारण पैदा हुई है लेकिन सवाल ये है कि अदालत क्यों सबकुछ जानते हुए भी डेथ वारंट एक के बाद एक जारी करती रही…वह भी एक नहीं, चार-चार बार।
सुबह 5.30 बजे हो सकती है फांसी?
चौथे वारंट में समय है मुकर्रर
20 मार्च सुबह 5.30 बजे
5.30 बजे फांसी का प्रावधान नहीं
सुबह 6 बजे, 7 बजे, 8 बजे फांसी का प्रावधान
नया समय सुबह 5.30 बजे कैसे?
अदालत ने गलती सिर्फ इतनी ही नहीं की है। चौथे और अंतिम वारंट में फांसी की सज़ा का समय मुकर्रर है 20 मार्च सुबह 5.30 बजे। जबकि फांसी की सज़ा के लिए तय समय में 5.30 बजे कहीं आता ही नहीं है। जो मुकर्रर समय है उसके मुताबिक फांसी सुबह 6 बजे, 7 बजे और 8 बजे ही दी जा सकती है। फिर यह नया समय 5.30 बजे कैसे? क्या एक और आधार तैयार नहीं हो चुका है फांसी के टलने का?
निर्भया के गुनहगारों के पास चार-चार बार डेथ वारंट से गुजरने के बाद अब फांसी की सज़ा के बजाए उम्र कैद मांगने का पूरा आधार भी तैयार है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या मौत से बच जाएंगे निर्भया के गुनहगार? क्यों यमराज निर्भया के गुनहगारो का रुख नहीं कर रहे हैं? क्यों यमराज के आने का इंतजार हो रहा है बार-बार? कौन है असली गुनहगार?