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लड़ेंगे नहीं बढ़ेंगे केजरीवाल

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अरविंद केजरीवाल के शपथ ग्रहण को मीडिया ने तीसरी कसम कहा जा रहा है। केजरीवाल की तीसरी कसम।

मंच पर दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों के प्रतिभावान लोग हैं…कोई शिक्षक है, कोई ड्राइवर, कोई निर्माण मजदूर है, कोई आंगनबाड़ी कार्यकर्ता…50 की संख्या है इनकी जिन्होंने दिल्ली की दो करोड़ आबादी का प्रतिनिधित्व किया…

केजरीवाल के मंत्रिपरिषद में मनीष सिसौदिया, सत्येंद्र जैन, गोपाल राय, कैलाश गहलौत, इमरान हुसैन और राजेंद्र पाल गौतम शामिल हैं…सबने शपथ ली..

मगर, ये बातें गौर करने वाली नहीं हैं….गौर करने वाली बात यह है कि अरविंद केजरीवाल ने पहली बार खुद जाकर पीएम मोदी को शपथग्रहण समारोह में आने का न्योता दिया और आशीर्वाद लिया…न सिर्फ आशीर्वाद लिया…बल्कि मंच से समारोह  में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति की वजह भी बतलायी। पीएम मोदी शपथग्रहण के दिन अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में रहे।

गौर करने वाली बात यह भी रही कि सीएम अरविंद केजरीवाल ने मोदी विरोधी विपक्ष को अपने शपथग्रहण समारोह में आमंत्रित नहीं किया।

चौंकाने वाली बात यह भी रही कि शाहीन बाग के प्रतीक बन चुके अमानतुल्लाह खान को सरकार में शामिल नहीं किया गया..उनके बदले इमरान हुसैन को मौका मिला…

देश ने इस बात पर भी गौर किया कि 6 महिला विधायकों में किसी को भी आम आदमी पार्टी की सरकार में प्रतिनिधित्व नहीं मिला।

अरविंद केजरीवाल ने भारत माता की जय, इंकलाब ज़िन्दाबाद और वंदे मातरम् का उद्घोष शपथग्रहण में भी जारी रखा। राष्ट्र के निर्माण की बात पर उनका जोर रहा तो दिल्ली को दुनिया का नम्बर वन शहर बनाने का मकसद भी उन्होंने देश के सामने रखा…

विरोधियों को माफ करने और सबका साथ और सहयोग लेने की उदारता भी दिखाते नज़र आए अरविंद केजरीवाल…वहीं, हर बार की तरह अपने संबोधन में गीत गाना भी नहीं भूले केजरीवाल…इस बार उन्होंने जो गीत गुनगुनाया वह है ‘हम होंगे कामयाब’

अरविंद केजरीवाल ने शपथग्रहण के लिए जो विज्ञापन अखबारों में छपवाए या जो पोस्टर लगे दिखे, उनमें शिक्षा और स्वास्थ्य का नारा बुलंद दिखा। मगर, इन विज्ञापनों में सबसे महत्वपूर्ण संकल्प यह दिखा कि देश से अशिक्षा और बीमारी दूर करने की बात कही गयी थी।

एक पैन इंडिया प्रेजेंस बनाने की कसक अरविंद केजरीवाल के शपथग्रहण समारोह में नज़र आती है। मोदी की शैली में मोदी को जवाब देने का जज्बा नज़र आता है। बगैर लड़े, बगैर उलझे समांतर राजनीति विकसित करने की कोशिश भी दिखती है।

हां, समांतर ही नहीं वैकल्पिक राजनीति का पर्याय बनने की कोशिश करते दिखे अरविंद केजरीवाल। विपक्ष की एकता उन्हें नहीं चाहिए। मतलब ये कि मोदी की बीजेपी को हराना उनका मकसद नहीं, मोदी की बीजेपी का विकल्प बनना उनका मकसद है। शपथग्रहण समारोह का यही बड़ा संदेश है।

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