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Mission 2019 : राहुल मुकाबले को तैयार

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साल भर पहले कांग्रेस के पास महज 6 राज्य रह गये थे। तब राहुल ने 11 दिसम्बर 2017 को कांग्रेस की बागडोर सम्भाली। साल भर बाद ही एक साथ तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार। ये है राहुल गांधी का मैजिक।

राहुल ने कांग्रेस को बदल डाला। मुस्लिम तुष्टिकरण का जो धब्बा था, उसे धो डाला। हिन्दुत्व पर जो एकाधिकार बीजेपी का था, उस पर धावा बोल डाला। हिन्दुत्व पर भगवे के वर्चस्व को चुनौती दी। मंदिर-मंदिर घूमे, तो कैलाश मानसरोवर की यात्राएं भी कीं। अपना धर्म बताया, जाति बतायी और यहां तक कि गोत्र भी।

 राहुल पर तेज हो गये हमले

प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए धार्मिक आयोजनों में शरीक होने वाले नरेंद्र मोदी हों या योगी रहते हुए यूपी के मुख्यमंत्री का पद सम्भालने वाले आदित्यनाथ…वे भौंचक रह गये। राहुल पर इनके हमले व्यक्तिगत स्तर पर होने लगे। राहुल के नाना-नानी पर सवाल उठे, राहुल के दादा के बारे में पूछा जाने लगा। बीजेपी नेताओं में स्पर्धा-सी हो गयी कि वे राहुल को विधर्मी बताएं। कोई मुसलमान कहता, कोई पारसी कहता।  एक इंसान जो खुद को हिन्दू बता रहा था, उसके हिन्दू होने पर सवाल उठाए जाने लगे। मगर, जवाब राहुल को नहीं देना था, जनता को देना था। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जनता ने जवाब दिया।

राहुल ने फूंकी कांग्रेस में जान

राहुल ने संगठन में जान फूंकी। दिग्विजय, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश में एक साथ पार्टी के लिए जान लड़ाते दिखे, तो यह राहुल के नेतृत्व का चमत्कार ही था। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट को एक साथ पार्टी के लिए पसीना बहाते भी लोगों ने देखा। छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस ने कोई चेहरा सामने रखकर चुनाव नहीं लड़ा। नतीजा सामने है। तीनों राज्यों में कांग्रेस का परचम लहराया।

जीत के बाद की चुनौती और मुश्किल होने वाली थी। मगर, संघर्ष से मिली सत्ता को गुटबाजी से ख़राब नहीं करने की राह राहुल पहले ही दिखा गये थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने पिता के साथ काम कर चुके कमलनाथ के लिए अपनी महत्वाकांक्षा दबानी पड़ी। राजस्थान में 400 रैलियां और रोड शो करने वाले सचिन पायलट की सीएम पद पर दावेदारी तो बिल्कुल बनती थी, मगर उन्हें भी त्याग की राजनीति ही दिखानी होगी क्योंकि वे राहुल के साथी हैं। वो राहुल, जो खुद कुर्सी का त्याग करते रहे हैं। ये उदाहरण ये बताने के लिए काफी है कि राहुल ने अपने युवा नेतृत्व को त्याग सिखाया है।

राहुल की झप्पी, मोदी की मिमिक्री 

राहुल का संसद में पीएम मोदी को प्यार की झप्पी देना कौन भूल सकता है। वहीं, राहुल की इस पेशकश का दोनों हाथों से उठो-उठो वाले अंदाज में मिमिक्री और एक्टिंग करते हुए नरेंद्र मोदी का वह रूप भी कौन भूल सकता है, जो उन्होंने प्रतिक्रिया देते हुए दिखलायी थी। यह घटना राहुल के राजनीतिक जीवन की बड़ी घटना बनी रहेगी।

राहुल ने जब 2004 में राजनीति में कदम रखा, तब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हो चुके थे। मगर, ये वही दौर था जब केन्द्र में फील गुड की हवा निकल चुकी थी। सोनिया की निगरानी में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई थी। राहुल की हैलीकॉप्टर एन्ट्री नहीं हुई। सांसद बने, पार्टी में महासचिव बने, उपाध्यक्ष बने और तब आखिरकार कांग्रेस के अध्यक्ष।

राहुल ने कांग्रेस को ज़िन्दा किया

राहुल ने पार्टी के महासचिव रहते हुए यूपी में कांग्रेस को पुनर्जीवित किया था। 2007 का य़ूपी विधानसभा चुनाव हो या 2009 का लोकसभा चुनाव…कांग्रेस को राहुल ने यूपी में जिन्दा कर दिखाया। बिहार में भी राहुल ने कांग्रेस में नयी जान फूंकी थी।  हालांकि 2014 और 2017 आते-आते इन प्रयासों पर पानी भी फिर गया। फिर भी राहुल ने प्रयास जारी रखा।

तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राहुल के लिए पीएम की कुर्सी छोड़ने की पेशकश भी की थी, लेकिन राहुल ने कबूल नहीं की। जब 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला, तो राहुल  के लिए माहौल बिल्कुल उल्टा हो चुका था। यूपीए सरकार पर भ्रष्टाचार के सारे सवालों के जवाब बतौर उपाध्यक्ष राहुल को झेलने पड़ रहे थे, तब सोनिया भी बीमार रहने लगी थीं। एक के बाद एक राज्य कांग्रेस के हाथ से निकलते चले गये। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देकर बीजेपी लगातार हमलावर रही।

राहुल ने दिया महागठबंधन का मंत्र

राहुल ने भारतीय राजनीति को महागठबंधन का मंत्र दिया। बिहार में यह मंत्र सफल रहा। लालू-नीतीश-कांग्रेस सब एक मंच पर आ गये। बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी। हालांकि नीतीश के पाला बदलने के कारण यह प्रयास मिट्टी में मिल गया। मगर, राहुल की सोच को राजनीति में आजमाया जाने लगा।

यूपी में एसपी-कांग्रेस गठजोड़ की 2016 विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद इस महागठबंधन की जरूरत और शिद्दत से महसस की जाने लगी। उसके बाद यूपी के उपचुनावों में गोरखपुर, फूलपुर और कैराना में जो नया प्रयोग दिखा, वह राहुल की सोच का ही विस्तार था।

कर्नाटक में राहुल ने दिखाया कौशल

कर्नाटक के अनुभव ने भी राहुल को सिखाया। तब तक राहुल कांग्रेस के अध्यक्ष बन चुके थे। कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार थी। पार्टी की हार हुई। बीजेपी ने जबरन सरकार बनायी। राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस ने सदन से लेकर अदालत तक लड़ाई लड़ी। राहुल ने अतीत से सबक लिया। जेडीएस को समर्थन देकर खरीद-फरोख्त की राजनीति पर जीत दर्ज की।

अब 2019 में राहुल.. नरेंद्र मोदी को चुनौती देने को तैयार हैं। पार्टी में नयी धार है। कार्यकर्ताओं में उत्साह है। सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया के रूप में युवा नेताओं का नया रूप भी उनके साथ है। विरोधी दलों को साथ करने की चुनौती भी है। महागठबंधन जैसी सोच को देशव्यापी स्तर पर अमली जामा पहनाना अब राहुल का अगला काम होगा। परिस्थितियों ने अचानक ही राहुल बनाम मोदी की लड़ाई को गम्भीर बना दिया है। भावी राजनीति इसी हिसाब से लामबंद होने वाली है।

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