रामदेव-मोदी में अंदरखाने खिंची है तलवार!
रामदेव को किस नाम से बुलाया जाए- योग गुरु, बीजेपी समर्थक, राष्ट्रवादी, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनकर्ता, समाज सुधारक या बिजनेसमैन…आप उन्हें सबकुछ मान लें एक साथ…या सुविधानुसार जब चाहे जो बोल लें। मगर, आप अब रामदेव को मोदी समर्थक नहीं कह सकते।
रामदेव ने यह आकलन कर लिया है कि 2019 में नरेंद्र मोदी का दोबारा प्रधानमंत्री बनना सम्भव नहीं है। उन्होंने इस बारे में खुलकर 26 दिसम्बर को मदुरै में दोहरा भी दिया,
नहीं पता कौन होगा अगला PM- रामदेव
“हम नहीं कह सकते कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा या देश का नेतृत्व कौन करेगा। स्थिति बहुत दिलचस्प है। राजनीति में अब कड़े संघर्ष की स्थिति बनी है।”
सवाल ये है कि क्या बीजेपी की हालत पतली देखकर रामदेव राजनीति के मैदान से पतली गली से भाग निकलने का रास्ता तलाश रहे हैं? इस सवाल से वह दृश्य मन में ताजा हो जाता है जब भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान यूपीए के शासनकाल में रामलीला मैदान में लाठीचार्ज हुआ था…और रामदेव महिला की पोशाक पहनकर पतली गली से फरार हो गये थे।
बदल गये हैं रामदेव
तब और अब में क्या फर्क है? तब रामदेव तत्कालीन यूपीए सरकार पर आक्रामक हो गये थे। तब उन्होंने भांप लिया था कि राजनीति की हवा यूपीए के ख़िलाफ़ है और वे इसे भुना सकते हैं। उन्होंने कहा था कि यूपीए सरकार उनकी जान लेना चाहती थी। उसी घटना के बाद से उन्होंने सोनिया-राहुल परिवार और कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया था।
अब जबकि रामदेव को लगने लगा है कि बीजेपी का दोबारा सत्ता में आना मुश्किल है तो वे राजनीति के मैदान से पतली गली से भागते दिख रहे हैं। वे खुद को बीजेपी समर्थक भी बताने से परहेज कर रहे हैं और कांग्रेस विरोधी भी। ऐसा नहीं है कि रामदेव ने अचानक ही ऐसा रुख अख्तियार कर लिया हो।
वे कुछ समय पहले से ही कहने लगे थे कि वे निर्दलीय हैं या फिर सर्वदलीय। कभी लालू प्रसाद के साथ नज़र आए रामदेव तो कभी वे शिवपाल यादव के साथ भी दिखे। यहां तक कि तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत के बाद रामदेव के सुर राहुल गांधी के भी पक्ष में नज़र आए जब उन्होंने एक न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू मे कहा कि उन्हें विपक्ष से कोई बैर नहीं है। राहुल ने कर्म किया और उन्हें फल मिला।
रामदेव के रुख पर उन लोगों को आश्चर्य हो सकता है जो उन्हें भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ क्रूसेडर मानते रहे हों। सच ये है कि बीते चार-साढ़े चार साल में न भ्रष्टाचार मिटा है और न ही कालाधन वापस आया है। महंगाई बढ़ी है, बेरोजगारी बढ़ी है और वर्तमान सरकार के प्रति असंतोष बढ़ा है।
असंतोष खुद रामदेव का भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मोदी सरकार से बढ़ा है लेकिन इसकी वजह ये मुद्दे नहीं, वजह है नरेंद्र मोदी का उनकी ओर आंखें टेढ़ी कर लेना। 2014 में मिली जीत को मोदी मैजिक के तौर पर प्रचारित करने और उस जीत में रामदेव की ओर से अपनी भूमिका बढ़-चढ़कर बताने से दो अंहकार आपस में तलवारबाजी करने लगे। दूरियां बढ़ती चली गयीं। और, यह इस कदर बढ़ीं कि अब 2019 में नरेंद्र मोदी के लिए रामदेव न वोट मांगेंगे, न ही चुनाव प्रचार करेंगे। बल्कि खुलकर हार की भविष्यवाणी भी करेंगे।
रामदेव ने मोदी को कहा था ‘राष्ट्र ऋषि’
ये वही रामदेव हैं जिन्होंने 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक समारोह में राष्ट्र ऋषि घोषित किया था। कोशिश ये थी कि जैसे महात्मा गांधी को बापू, सुभाषचंद्र बोस को नेताजी कहा जाता है उसी तरह नरेंद्र मोदी को ‘राष्ट्र ऋषि’ कहा जाने लगे। मगर, ये कोशिश परवान नहीं चढ़ सकी। शायद ही कोई नरेंद्र मोदी को ‘राष्ट्र ऋषि’ कहता हो। यह उदाहरण ये बताने के लिए भी है कि रामदेव भले ही खुद को किंगमेकर समझते हों, लेकिन वास्तव में ये उनकी गलतफ़हमी है। अगर सच में वे किंगमेकर होते, तो मुश्किल में पड़े नरेंद्र मोदी को मझधार में छोड़ने की बात नहीं सोचते।
दाल में काला तो तब ही नज़र आने लगा था जब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को 2019 के मिशन में समर्थन मांगने के लिए रामदेव के पास जाना पड़ा। यह तो वही बात हो गयी कि कोई बीजेपी के लिए समर्थन मांगने खुद अमित शाह और नरेंद्र मोदी के पास जा पहुंचे। रामदेव और बीजेपी एक-दूसरे से अलग नहीं रहे थे, मगर अमित शाह के समर्थन मांगने से रामदेव अलग दिखाई पड़े।
रामदेव ने अमित शाह की उम्मीदों पर सितम्बर 2018 में भी पानी फेर दिया था जब उन्होंने कहा था कि वे बीजेपी के लिए चुनाव प्रचार नहीं करेंगे। एक बार फिर वे कहते दिख रहे हैं,
मोदी के लिए वोट नहीं मांगेंगे रामदेव
“अब मैं राजनीति पर ध्यान नहीं लगा रहा हूं। मैं न तो किसी व्यक्ति और न ही किसी पार्टी का समर्थन कर रहा हूं।”
अचानक रामदेव तटस्थ, निरपेक्ष कैसे हो गये? उनकी ये तटस्थता, निरपेक्षता सच पूछें तो बीजेपी के ख़िलाफ़ है, नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ है। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ एक क्रूसेडर, देश में क्रांति की बात करने वाला एक योगी रूपधारी अब अचानक एक बिजनेसमैन की तरह बात करने लगा है। यह रूप 2014 में क्यों नहीं दिखा? तब की सक्रियता अब की तटस्थता से कई सवाल कर रही है। क्या देंगे रामदेव ऐसे सवालों का जवाब?
जवाब तो नरेंद्र मोदी को भी देना है और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को भी, जिनसे एक के बाद एक पिछली चुनावी जीत में मददगार रहे नेता सवाल कर रहे हैं…उपेंद्र कुशवाहा बिहार कोछलने की बात कह रहे हैं, तो नितिन गडकरी नेतृत्व को जिम्मेदारी लेने की सलाह दे रहे हैं। रामदेव के लिए पीएम का बचाव मुश्किल हो गया है तो उद्धव ठाकरे कह रहे हैं कि चौकीदार चोर है। तो राहुल गांधी की तर्ज पर अब उद्धव ठाकरे भी कह रहे हैं। आखिर क्यों सबलोग एक साथ 2019 के पहले मोदी-शाह को ‘राम-राम’ कहते हुए उनसे किनारा करते दिख रहे हैं?