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सेमीफाइनल नहीं फाइनल कहिए : कौन जीतेगा मध्यप्रदेश?

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मध्यप्रदेश में वोटिंग पूरी हो चुकी है। एक बार फिर मतदाताओं ने ज़बरदस्त उत्साह दिखलाया है। ईवीएम में ख़राबी की शिकायतों ने भी सुर्खियां बटोरी हैं। 5 करोड़ से ज्यादा वोटरों के सामने 2907 उम्मीदवारों में से 230 को विधानसभा भेजने की चुनौती है। इनमें से 656 उम्मीदवार करोड़पति हैं। अब सबको 11 दिसम्बर का इंतज़ार है, जब ये तय होगा कि 15 साल बाद भी बीजेपी की पारी नाबाद रहती है या कांग्रेस अपना राजनीतिक वनवास तोड़ने में सफल रहती है।

काम ख़त्म, अब ईश्वर का भरोसा

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पैतृक गांव जैत में वोट डाला। इससे पहले नर्मदा नदी और कुलदेवी की पूजा अर्चना की। मगर, मुख्यमंत्री शिवराज पर तनाव भी साफ दिखा जब वोट डालने के बाद भी वे अपना चुनाव प्रचार करते दिखे। अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी के लिए जो कुछ उन्होंने कहा, उसे सुनिए,

वोट के दिन भी वोट मांगते शिवराज

“अरुण मेरे साथी हैं। कांग्रेस में उनके साथ बहुत नाइंसाफी हुई। पहले उन्हें अध्यक्ष पद से हटाया, इसके बाद चुनाव लड़वाया। वह भी बुधनी से। मैं तो कहूंगा कि वह भी भाजपा को वोट दें, क्योंकि मध्य प्रदेश के विकास की बात है।”

कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ ने भी वोट डाला और बाहर निकलकर पंजा लहराया। इससे पहले उन्होंने भी छिंदवाड़ा के हनुमान मंदिर में पूजा-अर्चना की। उन पर भी चुनाव नतीजों का दबाव साफ दिखा जब वे बोले,

दबाव में कमलनाथ भी

“प्रदेश के लोगों पर उन्हें पूरा भरोसा है। यहां की जनता साधारण और मासूम है, जिन्हें लंबे समय से भाजपा सरकार लूट रही है।”

कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ग्वालियर में वोट डाला। ईवीएम की ख़राबी और इस वजह से कांग्रेस को वोटों के नुकसान के प्रति वे चिंतित दिखे,

सिंधिया को ईवीएम की चिंता

“हमारी मांग है कि जहां भी वोटिंग में परेशानी आए, वहां मतदान का समय बढ़ाया जाए।“

राज्य चुनाव आयुक्त पर भी ईवीएम का प्रकोप

ईवीएम में ख़राबी का आलम ये रहा कि प्रदेश में सुबह के 12 बजे तक 70 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में 100 से ज्यादा ईवीएम ख़राब रहे। भोपाल में खुद राज्य चुनाव आयुक्त बीएल कांताराव को इसी वजह से वोट देने के लिए 15 मिनट इंतज़ार करना पड़ा।

अहम मुकाबलों पर अगर एक नज़र डालें तो

बुधनी से शिवराज सिंह और उनके मुकाबले कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव की सियासी किस्मत ईवीएम में क़ैद हो चुकी है।

होशंगाबाद में बीजेपी से कांग्रेस में आए सरताज सिंह बीजेपी के सीतासरण शर्मा को चुनौती दे रहे हैं। यहां कांटे का मुकाबला है।

इंदौर में आकाश विजयवर्गीय चुनाव लड़ रहे हैं जो बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे हैं। यह सीट भी प्रतिष्ठा की सीट बनी हुई है। यहां कांग्रेस के अश्विन जोशी उन्हें टक्कर दे रहे हैं।

भोजपुर सीट से कांग्रेस के दिग्गज सुरेश पचौरी फिर चुनाव मैदान में हैं। उनके ख़िलाफ़ बीजेपी विधायक सुरेंद्र पटवा हैं जिन्होंने पिछले चुनाव में भी उन्हें शिकस्त दी थी।

चाचौड़ा विधानसभा की सीट इसलिए अहम है क्योंकि यहां दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। उनके सामने बीजेपी की उम्मीदवार हैं ममता मीणा।

विजयराघवगढ़ की सीट पर सबकी नज़र इसलिए है क्योंकि यहां सबसे अमीर उम्मीदवार बीजेपी के संजय पाठक चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस से पद्मा शुक्ला उन्हें चुनौती दे रही हैं। एक और खासियत ये है कि यहां दोनों ही उम्मीदवार कांग्रेस और बीजेपी छोड़कर एक-दूसरे के ख़िलाफ़ मैदान में हैं।

अगर चुनाव लड़ रहे दलों की बात करें तो

मध्यप्रदेश का दंगल : किसके कितने उम्मीदवार

बीजेपी सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि कांग्रेस 229, बीएसपी 227, आम आदमी पार्टी 207, सपाक्स 109, गोंडवाणा गणतंत्र पार्टी 73 और समाजवादी पार्टी 52 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

विगत विधानसभा चुनाव टैली पर नज़र डालें तो 230 सीटों वाली मध्यप्रदेश विधानसभा में बीजेपी के पास 165, कांग्रेस के पास 58, बीएसपी 4 और अन्य के पास 3 सीटें हैं।

निर्णायक रही हैं मालवा-निमाड़ की 66 सीटें

2003 में बीजेपी ने जीतीं 51 सीटें

2008 में बीजेपी को मिलीं 41 सीटें

2013 में बीजेपी की झोली में 56 सीटें

मध्यप्रदेश में 66 विधानसभा सीटों वाले मालवा-निमाड़ क्षेत्र में जो बढ़त बनाता है सरकार उसी की बनती है।  बीजेपी ने 2003 में यहां से 51 सीटें हासिल कर दिग्विजय सिंह के 10 साल के शासन का अंत किया था। तब से लेकर बीजेपी यहां लगातार बढ़त बनाती रही है। 2008 में बीजेपी ने यहां से 41 सीटें जीतीं थीं, तो 2013 में 56 सीटों पर कब्जा जमाया।  इस बार दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मिलकर इस क्षेत्र में पासा पलटने की योजना पर काम किया है जिससे मुकाबला दिलचस्प हो गया है।

कांग्रेस-बीजेपी ने 400 रैलियां-रोड शो किए

चुनाव को अपने-अपने पक्ष में मोड़ने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने जी-जान एक कर दिया। बीजेपी की ओर से शिवराज, अमित शाह और नरेंद्र मोदी और कांग्रेस की ओर से कमलनाथ, ज्योतिरादित्य और राहुल गांधी ने मिलकर कुल 400 रैलियां और रोड शो किए। अगर बीजेपी और कांग्रेस में इसे बाटें तो संख्या बराबर रही 200-200.

बीजेपी ने की 182 रैली, 18 रोड शो

नेता                           सभा         रोड शो

शिवराज सिंह            149             12

नरेंद्र मोदी                   10             00

अमित शाह                 23             06

कुल                           182             18          = 200

शिवराज सिंह चौहान ने अपने लिए कुल 149 सभाएं कीं, करीब एक दर्जन रोड शो किए। उनके पक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 जनसभाएं कीं, तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने 23. शाह ने 6 रोड शो भी किए। इस तरह शिवराज, मोदी, शाह ने मिलकर 182 सभाएं कीं और 18 रोड शो किए। दोनों को अगर जोडें तो ये संख्या होती है पूरे 200.

कांग्रेस ने की 186 रैली, 14 रोड शो

नेता                                 रैली         रोड शो

राहुल गांधी                       21          02

ज्योतिरादित्य सिंधिया       110         12

कमलनाथ                         55          00

कुल                                186         14    = 200

जवाब में कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश में 21 जनसभाएं कीं और दो रोड शो किए, तो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 110 जनसभाएं कीं और 12 रोड शो किए। कमलनाथ ने 55 रैलियां कीं। इस तरह इन तीनों नेताओं ने मिलकर 186 रैलियां कीं और 14 रोड शो किए। यानी कुल मिलाकर संख्या हुई वही 200.

मंदिर जाने में राहुल रहे सबसे आगे

मंदिर जाने में कोई नेता किसी से पीछे नहीं रहे। स्थानीय नेताओं को छोड़ दें तो अमित शाह ने महाकाल, मैहर समेत कई मंदिरों में पूजा अर्चना की। मगर, मंदिर जाने में राहुल गांधी सबसे आगे रहे। दतिया के पीताम्बरा पीठ और महाकाल मंदिरों में पूजा के साथ-साथ वे मस्जिद और गुरद्वारों में भी गये और वहां मत्था टेका।

मध्यप्रदेश चुनाव इसलिए रोचक है। कांग्रेस दोबारा सत्ता में आने को बेताब है और बीजेपी गद्दी बचाने को बेचैन। दोनों पार्टियां जानती हैं कि 2019 के लिए आम चुनाव का रास्ता भी यहीं से खुलता है। इसलिए कांटे के मुकाबले में दोनों पार्टियों ने किसी भी क्षेत्र में कोई कसर बाकी नहीं रखी है।

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