सीरिया में घमासान : इदलिब में 30 लाख लोगों की जान दांव पर
सीरिया के इदलिब शहर पर दुनिया की नज़र है। यहां 30 लाख लोग रह रहे हैं जिनमें 10 लाख बच्चे हैं। ज्यादातर लोग सीरिया के अलग-अलग हिस्सों से यहां आए हैं और ये सुन्नी हैं। यह बताना भी जरूरी है दुनिया में आम तौर पर इस्लाम मानने वाले दो समुदाय हैं शिया और सुन्नी। सीरिया की सरकार का नेतृत्व एक शिया के हाथों में है।
अगर बशर अल असद के नेतृत्व में सीरिया की सरकारी सेना और रूस ने मिलकर इदलिब शहर पर हमला किया, तो 30 लाख लोगों की ज़िन्दगी मुश्किल में पड़ जाएगी क्योंकि पड़ोसी तुर्की ने भी अपनी सीमा सील कर दी है। आखिर अपने ही देश के शासनाध्यक्ष से किसी शहर को हमले का अंदेशा क्यों है? इस सवाल का जवाब आप भी जानना चाहेंगे।
इराक के पतन के बाद मजबूत हुआ ईरान भी सीरिया और रूस के साथ है। वहीं, सऊदी अरब के नेतृत्व में सुन्नी देश सीरिया में बशर अल असद सरकार को कमजोर करने में लगे हैं। अमेरिका, इंग्लैंड जैसे देश भी लगातार सीरिया में असद सरकार पर हमला करते रहे हैं। इस बार भी अमेरिका और इंग्लैंड ने सीरिया और रूस को चेतावनी दी है कि वे इदलिब शहर पर हमले की ना सोचें।
अमेरिका को भारत और पाकिस्तान से भी उम्मीद है। पाकिस्तान चूकि सुन्नी देश है इसलिए वह स्वाभाविक रूप से बशर अल असद सरकार के खिलाफ और अमेरिका के साथ है। मगर, भारत के लिए स्थिति भिन्न है। भारत के अमेरिका विरोधी ईरान से भी बेहतर रिश्ते हैं और रूस से भी। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ और रक्षा मंत्री जिम मैटिस खास तौर पर भारत के रुख को प्रभावित करने दिल्ली पहुंचे हैं। उन्होंने साफ कर दिया है कि ईरान से तेल खरीदने और रूस से मिसाइल रक्षा प्रणाली की खरीद को लेकर भारत से बातचीत की जाएगी।
मगर, इस बहाने सीरिया में भी अमेरिका भारत की राजनयिक मदद चाहेगा। भारत में भी सुन्नी आबादी ज्यादा है और स्थानीय मुसलमानों का समर्थन उन लोगों के साथ है जो बशर अल असद सरकार से लड़ रहे हैं। मगर, भारत का आधिकारिक रुख राष्ट्रीय हितों के अनुरूप ही तय होगा। जब अमेरिका और इंग्लैंड ने सीरिया पर बमबारी की थी, तब भी भारत ने कोई प्रतिक्रिया देने से खुद को बचाए रखा था। दुनिया में आतंकवाद के लिए ख़तरा बने ISIS को जड़ से उखाड़ने में भी सीरिया की सरकार का योगदान रहा है।
अब भी इदलिब शहर में जो 10 हज़ार लड़ाके हैं उनका संबंध अलकायदा से है. चाहे ISIS हो या अलकायदा- इन्होंने कश्मीर में अशांति फैलाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। हालांकि इंग्लैंड, फ्रांस जैसे यूरोप के कई देशों में भी ISIS और अलकायदा ने आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिया था। मगर, अमेरिका का सीरिया में अलग हित है।
अमेरिका तेल व्यापार पर ईरान के वर्चस्व को तोड़ने और अपना वर्चस्व बनाने का इरादा रखता है। इसले वह आतंकवाद को भी शह देने से पीछे नहीं हटता। एक तरह से सीरिया बारूद के ढेर पर है। दोनों ही ओर के लोग उस बारूद में आग लगाने को बेताब हैं। शिया और सुन्नी से लेकर आतंकवाद और कारोबार जैसे नजरियों के साथ समूहों में बंटे देशों ने सीरिया को तमाशा बना दिया है।
ख़त्म हो चुके शीत युद्ध का दौर रूस और अमेरिका के बीच नये सिरे से पनपता दिख रहा है। हथियारों की होड़ बढ़ रही है और तनातनी का नया युग भी दिख रहा है। सीरिया इसी नये शीत युद्ध की बलि चढ़ रहा है। मगर, सवाल ये है कि क्या 30 लाख लोगों की ज़िन्दगी से खेलने के लिए सीरिया की सरकार को आज़ाद छोड़ा जा सकता है?