तीन तलाक को तलाक-तलाक-तलाक

Bye-Bye to triple Talaq
तलाक-ए-बिद्दत यानी तीन तलाक को अलविदा कहने के लिए केन्द्र सरकार डटकर तैयार है। अब तक आयी आपत्तियों को ध्यान में रखकर बिल में संशोधन किए गये हैं और उसे कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। लोकसभा से पहले ही पारित हो चुका ये बिल अब राज्यसभा में भी पारित हो जाएगा, इसके प्रबल आसार हैं।
राज्यसभा में अभी-अभी डिप्टी चेयरमैन के चुनाव में सत्ताधारी पार्टी ने अपना बहुमत साबित कर दिखलाया है। अगर राज्यसभा में ये बिल पारित नहीं भी होता है तो सरकार इसके लिए अध्यादेश या कार्यकारी आदेश लाने की वैकल्पिक तैयारी के साथ खड़ी है। कहने का मतलब ये है कि तीन तलाक को अलविदा कहने के लिए सरकार ने कमर कस ली है।
अब आधी मुस्लिम आबादी के साथ जारी अन्याय ख़त्म होकर रहेगा। अब कोई मुस्लिम मर्द तीन बार तलाक बोल कर, लिख कर या फिर ह्वाट्सएप कर अपनी बीबी को दाम्पत्य जीवन से अलग नहीं कर सकेगा, एक पत्नी का हक़ नहीं छीन सकेगा और न ही बच्चों को उसकी मां से अलग कर सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने वर्षों से चली आ रही इस कुप्रथा को पहले ही अमानवीय करार दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार से इस बाबत कानून बनाने को कहा था। इसी आलोक में मोदी सरकार ने बीते सत्र में ही इसकी पहल की थी।
तीन तलाक को लेकर जो आपत्ति मूल रूप से सामने आ रही थी, उसे भी संशोधनों के जरिए संज्ञान में लिया गया है। तीन तलाक के बिल में संशोधनों के बाद अब पीड़िता या उसके खून के रिश्ते के किसी शख्स को एफआईआर दर्ज कराने का अधिकार होगा। गैरज़मानती अपराध तो यह अब भी रहेगा, लेकिन मजिस्ट्रेट से ज़मानत मिल सकेगी।
मजिस्ट्रेट पीड़ित महिला को गुजाराभत्ता देने पर भी सुनवाई कर सकेंगे। इसके साथ ही कोर्ट की इजाज़त से समझौते का भी प्रावधान होगा। तीन तलाक मामले में दोषी पाए जाने पर शौहर के लिए 3 साल की सज़ा का प्रावधान है। कांग्रेस ने बिल में संशोधनों का स्वागत किया है लेकिन कहा है कि अब भी बहुत सारी आशंकाओं को दूर नहीं किया गया है।
कांग्रेस का मानना है कि पर्सनल लॉ में क्रिमिनल एक्ट नहीं होना चाहिए। यह सवाल भी उठाए गये हैं कि जब शौहर ही जेल चला जाएगा तो बीवी-बच्चों को गुजाराभत्ता कैसे दिया जा सकेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजमगढ़ की सभा में कांग्रेस पर तीन तलाक को लेकर ये कहते हुए हमला बोला था कि कांग्रेस को केवल मुस्लिम मर्दों की फिक्र है, महिलाओं की नहीं। इससे पहले भी पीएम मोदी ये कह चुके हैं कि जब दहेज जैसे मामलों में हिन्दू परिवार जेल जाता है तब परिवार के भरण-पोषण का सवाल क्यों नहीं उठता?
मतलब साफ है कि राजनीतिक लाभ लेने की गरज से तीन तलाक का मुद्दा आने वाले समय में भी गरम रहने वाला है। चूकि पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों में भी तीन तलाक प्रतिबंधित है इसलिए मोदी सरकार का ये सवाल बिल्कुल जायज प्रतीत होता है कि धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील भारत तीन तलाक के मामले में अपने पड़ोसी देशों से पीछे कैसे रह गया? महिलाओं के साथ नाइंसाफी की इस सबसे बड़ी कुप्रथा को कैसे और क्यों बर्दाश्त किया जाता रहा?