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योगी सरकार को उल्टा पड़ेगा अखिलेश को रोकना

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अखिलेश यादव प्रयागराज नहीं पहुंच सके। लखनऊ के चौधरी चरण सिंह एयरपोर्ट पर ही उन्हें रोक लिया गया। इस तरह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र संघ के शपथग्रहण समारोह में शिरकत नहीं कर पाए अखिलेश। 2012 में इसी यूनिवर्सिटी में योगी आदित्यनाथ को जाने से रोक दिया गया था। तब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव थे। इसलिए इस घटना को बदले की कार्रवाई के तौर पर भी देखा जा रहा है।

हाल में जिस तरीके से पश्चिम बंगाल में बीजेपी की रैलियों के लिए इजाजत देने में ममता सरकार अनाकानी करती रही है और योगी आदित्यनाथ को एयरपोर्ट से उतरने की इजाजत नहीं दी गयी है, उसे देखते हुए इस घटना को बीजेपी की ओर से विपक्ष को जवाब के तौर पर भी देखा जा रहा है। पुरुलिया में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने झारखण्ड की सीमा से प्रवेश कर प्रशासन की इजाजत नहीं मिलने के बावजूद रैली की।

क्या हैं योगी सरकार के तर्क

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव को हवाई अड्डे पर रोके जाने को सही ठहराया है। {gfx in} उनका कहना है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने अखिलेश यादव के कार्यक्रम की इजाजत नहीं दी थी। प्रशासन को छात्रों के बीच गुटीय मारपीट और व्यापक तोड़फोड़ व आगजनी की आशंका थी, जिसे देखते हुए यह कदम उठाना जरूरी था। मुख्यमंत्री का एक और तर्क था कि प्रयाग में अभी कुम्भ चल रहा है। ऐसे में वहां अशान्ति फैलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। योगी ने समाजवादी पार्टी पर अशांति फैलाने की कोशिश का भी आरोप लगाया।{gfx out}

घटना की प्रतिक्रिया होनी थी। पूरे प्रदेश में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता उबाल पर हैं। प्रयाग में समाजवादी छात्रों पर लाठीचार्ज हुआ। लड़कियों तक को नहीं बख्शा गया। बड़ी संख्या में छात्र अस्पतालों में हैं। इनमें समाजवादी पार्टी के युवा सांसद और अखिलेश के रिश्तेदार भी शामिल हैं। अखिलेश यादव ने इस घटना पर कहा है कि योगी सरकार छात्रों से डर गयी है।

योगी सरकार पर सवाल

आरोप-प्रत्यारोप से अलग इस घटना को देखने की जरूरत है। {gfx in} सवाल ये है कि एक विश्वविद्यालय परिसर में शान्ति को सुनिश्चित करने में क्या योगी सरकार सक्षम नहीं थी? सरकार के फैसले के बाद जो हिंसा हुई है इसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाए? सवाल ये भी है कि क्या कुम्भ के दौरान इलाहाबाद में कोई राजनीतिक कार्यक्रम नहीं हुए हैं? या फिर आने वाले समय में नहीं होंगे? या फिर वही कार्यक्रम होंगे, जिन्हें योगी सरकार होने देना चाहेगी?{gfx out}

जब पश्चिम बंगाल में एयरपोर्ट से उतरने की इजाजत नहीं मिलने को योगी  आदित्यनाथ लोकतंत्र विरोधी बताते हैं, तो अपने ही सूबे में इसी सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री को राजधानी लखनऊ के हवाई अड्डे से उड़ने की अनुमति नहीं देना कैसा लोकतंत्र है?

अगर मसला सिर्फ इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन का होता, तो अखिलेश यादव को लखनऊ में गिरफ्तार नहीं किया जाता। उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में घुसने से ही विश्वविद्यालय प्रशासन रोक सकता था। विश्वविद्यालय प्रशासन की पहुंच लखनऊ हवाई अड्डे तक नहीं होती। जाहिर है कि यह फैसला योगी सरकार के स्तर पर और ऊंचे स्तर पर लिया गया फैसला था।

मायावती स्वाभाविक रूप से अखिलेश के समर्थन में आ खड़ी हुईं। लोकसभा चुनाव से पहले इस मौके को भुनाने की कोशिश भी एसपी-बीएसपी करेगी। मगर, इस घटना पर इनसे चुप रहने की उम्मीद भी नहीं की जानी चाहिए। अगर राजनीतिक कार्यक्रमों को रोकने की कोशिश होगी, तो कोई राजनीतिक दल चुप कैसे रह सकता है?

अखिलेश को रोके जाने के पीछे की असली वजह क्या रही होगी? क्या अखिलेश का कहना सही है कि योगी सरकार डर गयी है? या फिर योगी आदित्यनाथ का कहना सही है कि अखिलेश अशांति फैलाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। इन सवालों में छिपे तथ्यों को परखने का एकमात्र तरीका यही है कि लोकतंत्र की परम्परा क्या कहती है? इसी हिसाब से सही और गलत का फैसला किया जा सकता है। इस लिहाज से देखें तो योगी सरकार गलत करती हुई दिख रही है और अखिलेश गलत का विरोध करते नज़र आ रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार गलत करती हुई दिख रही है और बीजेपी उस गलत का विरोध करती नज़र आ रही है।

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