1984 दंगे में बड़ी सज़ा : सज्जन पहुँचे जेल ज़िदग़ी भर के लिए
1984 सिख नरसंहार : ‘दुर्जन’ साबित सज्जन कुमार
सिख विरोधी दंगे पर ये बड़ा फैसला है…कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद हो गयी है…5 लाख का जुर्माना भी लगाया गया है…बाकी आरोपियों की सज़ा भी बढ़ायी गयी है या फिर बरकरार रखी गयी है…दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले ने 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद के दंगों और उन दंगों में मिले ज़ख्मों को ताजा कर दिया है।
दिल्ली में 2100 सिखों का कत्लेआम
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भारत में सिख विरोधी दंगे में 2800 लोगों की जानें गयी थीं। इनमें 2100 की हत्या केवल दिल्ली में की गयी फैसला पढ़ते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के जज की आंखें नम हो आयीं…तो वकील भी रुआंसे हो गये…इसलिए नहीं कि इन्हें मुजरिमों से कोई सहानुभूति हो…बल्कि इसलिए कि 34 साल लग गये इस फैसले के आने में…वैसे, अभी सुप्रीम कोर्ट भी बाकी है जहां इस फैसले को चुनौती दी जाएगी…
अभियुक्त को राजनीतिक संरक्षण
सिख विरोधी दंगों में 10 कमीशन और समितियां बन चुकी थीं। मगर, अभियुक्तों की गिरेबां तक कानून के हाथ पहुंच नहीं पा रहे थे। अभियोजन पक्ष के वकील एचएस फुल्का ने अदालत में इस तथ्य को सामने रखा कि रंगनाथ मिश्रा आयोग के सामने 17 हलफ़नामे सज्जन कुमार के ख़िलाफ़ दिए गये, मगर केस एक में भी दर्ज नहीं हुआ। उन्होंने दावा किया कि 1984 के बाद से ही अभियुक्त सज्जन कुमार की हैसियत कद्दावर नेता की बनी रही और वह कानून के हाथों में आने से बचता रहा।
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से भी यही बात जाहिर होती है। फैसले में कहा गया है,
“1947 की गर्मियों में विभाजन के दौरान बहुत सारे लोगों का कत्लेआम किया गया था। उसके ठीक 37 साल बाद दिल्ली फिर वैसी ही त्रासदी की गवाह बनी। आरोपी को राजनीतिक लाभ मिला और वह ट्रायल से बचता रहा।”
खास बात ये है कि अप्रैल 2013 में निचली अदालत ने सज्जन कुमार को बरी कर दिया था। तब केंद्र में कांग्रेस की मनमोहन सरकार थी। मगर, अगले साल 2014 में केन्द्र में सत्ता पलट गयी। सीबीआई ने सज्जन कुमार को बरी करने के फैसले को चुनौती देते हुए कहा कि सज्जन कुमार ‘सुनियोजित सांप्रदायिक दंगे’ और ‘धार्मिक रूप से सफाया’ में संलिप्त थे। इससे पहले हम आपको याद दिला दें कि जब 2005 में मनमोहन सिंह की सरकार बनी थी, तब इस दंगे की जांच के लिए नानावटी आयोग बनाया गया और इसी आयोग की अनुशंसा पर 1984 के दंगा मामले में सीबीआई ने केस दर्ज कराया।
सिखों के नरसंहार से जुड़ी ये फाइल कभी बंद कर दी गयी थी। जब फाइल दोबारा खुली और जांच चली तो सज्जन कुमार जैसे आरोपी बरी भी हो गये। मगर, तमाम बाधाओं को पार करते हुए 17 दिसम्बर 2018 को जब दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला आया है तो यह बात एक बार फिर सच साबित हुई है कि अन्याय को आखिर हारना ही पड़ता है।
1984 के दंगे में एक पक्ष दंगा पीड़ितों का है तो दूसरा पक्ष इससे जुड़ी राजनीति का भी रहा है। एक पक्ष दंगाइयों को सत्ता के संरक्षण का है तो दूसरा पक्ष इस नाम पर सिखों की सियासत का भी है। भागलपुर का दंगा हो या गुजरात का दंगा, इनमें भी हजारों लोग मारे गये थे। मगर, कभी भी इन दंगों को मुस्लिम विरोधी दंगा नहीं बताया। मगर, 1984 के दंगे को ‘सिख विरोधी दंगा’ ही कहा जाता रहा है। मीडिया से लेकर राजनीतिक दलों में यह इसी नाम से पुकारा जाता रहा है। क्या हम इसे महज दंगा कहकर संबोधित नहीं कर सकते?