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मौन-मोहन बनाम मौन-मोदीः कौन ज़्यादा ख़तरनाक?

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“हज़ारों जवाबों से अच्छी है ख़ामोशी मेरी,

न जाने कितने सवालों की आबरू रखे”- मनमोहन सिंह

डॉ मनमोहन सिंह ने अपनी ख़ामोशी को यही कवच पहनाया था। मगर, ऐसा कहते हुए भी ख़ामोशी टूटी थी। गठबंधन सरकार की मजबूरी, एक के बाद एक सामने आते घोटाले…इन सबके बीच चुप्पी…कोयला घोटाला सरीखे घोटालों की कालिख के बीच भी मनमोहन ईमानदार रह गये। उनकी चुप्पी दागदार नहीं हुई।

जब हर्षद मेहता तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव को करोड़ों रुपये देने का दावा कर रहा था, जब अल्पमत की सरकार को बहुमत की सरकार में बदलने के लिए नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री रहते हुए ही रिश्वत का खेल संसद के भीतर और बाहर खेला गया, तब भी इस देश के प्रधानमंत्री चुप थे। इस चुप्पी का दाग शायद ही कभी मिट पाए।

नरसिम्हाराव और मनमोहन सिंह के रूप में देश को ‘मौन’ प्रधानमंत्री मिले। वे स्वभाव से भी कम बोलने वाले थे। मगर, वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो पीएम मनमोहन सिंह के मौन को ललकारते हुए प्रधानमंत्री बने हैं। वे प्रभावशाली वक्ता हैं देश के। कोई दिन ऐसा नहीं जाता, जब वे बोल नहीं रहे होते हैं। मगर, फिर भी कई मुद्दों पर मौन रहने में नरेंद्र मोदी ने नरसिम्हाराव और मनमोहन सिंह को बहुत पीछे छोड़ दिया है।

नरेंद्र मोदी ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो बोलते हुए चुप रहते हैं। इस पहेली को समझना मुश्किल नहीं है।

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में गोलियां खाने के बाद 20 फरवरी 2015 को कम्युनिस्ट नेता गोविन्द पंसारे ने दम तोड़ा, 30 अगस्त 2015 को साहित्यकार कलबुर्गी की हत्या हुई, 5 सितम्बर 2017 को पत्रकार गौरी लंकेश को मार डाला गया…

सबके सब कट्टरपंथी हिन्दूवादी और दक्षिणपंथियों के विरोधी थे…इन हत्याओं के विरोध में जाने माने साहित्यकार उदय प्रकाश ने सम्मान लौटाने की पहल की, फिर तो ‘सम्मान वापसी’ आंदोलन बन गया। पूरा देश बोल रहा था, दुनिया बोल रही थी। मगर, नरेंद्र मोदी ने चुप्पी साध ली। इन हत्याओं की निन्दा तक नहीं की। एक ट्वीट तक नहीं किया, जबकि ट्विटर और सोशल मीडिया में लोकप्रियता का वे तब रिकॉर्ड बना रहे थे।

नोटबंदी के दौरान 100 से ज्यादा लोगों की मौत

8 नवंबर 2016 को नरेंद्र मोदी ने टीवी पर झूठा LIVE दिया। नोटबंदी लागू हो गयी। लम्बी-लम्बी लाइनों में लगकर लोग परेशान रहे। 100 से ज्यादा लोगों की देश में इसी वजह से मौत हुई।

नोटबंदी के फायदे नरेंद्र मोदी गिनाते रहे, कालाधन ख़त्म करने की बात, डिजिटल इंडिया बनाने की बात वे जोड़ते रहे, मगर कभी लोगों की परेशानियों पर, लगातार होती मौत पर मुंह नहीं खोला, ख़ामोश बने रहे पीएम।

PMO को 2016 से था अनियमितताओं का पता

पीएनबी में 12 हज़ार करोड़ की धोखाधड़ी करके नीरव मोदी और मेहुल चोकसी फरार हो गये। मेहुल चोकसी को ‘मेहुल भाई’ बोलते हुए नरेंद्र मोदी का पुराना वीडियो वायरल हुआ, दावोस के दौरे पर नीरव मोदी के साथ नरेंद्र मोदी की तस्वीरें सामने आयीं, 2016 में ही पीएनबी में धोखाधड़ी की सूचना पीएमओ के पास थी- यह बात भी सामने आयी। मगर, मौनी बाबा बने रहे हर दिन भाषण देने वाले नेता नरेंद्र मोदी। फरवरी 2018 में पीएम मोदी ने बगैर नीरव मोदी और मेहुल चोकसी का नाम लिए इतना जरूर कहा कि उनकी सरकार वित्तीय अनियमितताओँ पर नकेल कसने वाला कानून बनाएगी। मगर, क्या इतना काफी है?

सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर लोकतंत्र को ख़तरे में बताया। केएम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की कोलेजियम की सिफारिश सरकार ने पहली बार लौटा दी। हंगामा बरपा। विपक्ष ने तत्कालीन चीफ जस्टिस के ख़िलाफ़ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की। न्यायपालिका पर बोलने की मांग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लगातार की जाती रही, लेकिन वे कभी कुछ नहीं बोले। चुप बने रहे।

दादरी में अखलाक की मॉब लिंचिंग

दादरी में अखलाक की पीट-पीटकर इसलिए हत्या कर दी गयी कि उसके रेफ्रिजरेटर में कथित तौर पर बीफ मिला। उसके बाद भी यूपी, राजस्थान समेत कई जगहों पर गो रक्षा के नाम पर मॉब लिंचिंग होती रही। स्वामी अग्निवेश पर दो बार उन्मादी भीड़ ने हमले किए। एक बार तो वे अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने बीजेपी कार्यालय में जा रहे थे, जब उन पर हमले हुए। मगर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी इन घटनाओं पर दुख नहीं जताया। यहां तक कि हजारीबाग में मॉब लिंचिंग के आरोपियों को उनके मंत्रिपरिषद के सहयोगी जयंत सिन्हा ने सम्मानित किया। तब भी पीएम मोदी ने अपनी ज़ुबां नहीं खोली।

लंदन में है ललित मोदी, सुषमा-वसुंधरा पर मदद के आरोप

ललित मोदी वित्तीय अनियमितताओं के आरोप के बाद से लंदन में है। जून 2015 में केन्द्रीय मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे पर ललित मोदी की मदद के आरोप लगे। विपक्ष ने संसद की कार्यवाही स्थगित की, पीएम से सफाई की मांग की।  मगर, कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर बोलना जरूरी नहीं समझा।

तब झूला झूल रहे थे शी-मोदी

शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी गुजरात में साबरमती के किनारे झूला झूल रहे थे और तभी चीन की सेना डोकलाम पर कब्जा जमा रही थी। इस विषय पर भी तनातनी रही। चीन ने ल्हासा से चुम्बा वैली तक 500 किमी सड़क बना लिया। विपक्ष जवाब मांगता रहा, लेकिन नरेंद्र मोदी ने इस विषय पर भी हमेशा चुप्पी बनाए रखी।

नोटबंदी के दौरान जय शाह मालोमाल, 81 फीसदी बढ़ गयी बीजेपी की दौलत

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह पर नोटबंदी के दौरान मालोमाल होने की ख़बर आयी। खुद बीजेपी की संपत्ति 2016-17 में नोटबंदी के दौरान 81 फीसदी बढ़ गयी। इससे जुड़े सवालों पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खामोश बने रहे।

नवंबर 2017 में तमिलनाडु से दिल्ली आए किसानों ने सांकेतिक तौर पर चूहे खाए, घास खाए, नरमुंडों की माला पहनी। इस दौरान भी देश में किसानों की हत्याओं की ख़बरें आयीं। समूचा देश इस आंदोलन और किसानों की आत्महत्या की चर्चा करता रहा, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक शब्द इस विषय पर बोलना जरूरी नहीं समझा।

राफेल में आते रहे एक से बढ़कर एक मोड़, क्रोनी कैपिटलिज्म पर उठे सवाल

राफेल डील में एक के बाद एक मोड़ आते चले गये। एचएएल के बजाए अनिल अम्बानी की नवजात कम्पनी को ऑफसेट पार्टनर बनाने से जुड़े क्रोनी कैपिटलिज्म के सवाल पर भी प्रधानमंत्री ने चुप्पी नहीं तोड़ी है। कीमत का खुलासा, महंगी ख़रीद जैसे मुद्दों पर सरकार गोपनीयता का हवाला दे रही है। वहीं फ्रांस की मीडिया डील से जुड़े एक-एक पहलू को उजागर कर रही है। मगर, हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पर लगातार मौन हैं। हद तो तब हो गयी जब सरकार की ओर से राफेल मुद्दे पर सीलबंद लिफाफे में दिए गये जवाब भी गलत हो गये। उसे भूल का नाम दिया गया। मगर, अब भी पीएम हैं कि मुंह खोलने को तैयार नहीं।

चुप रहने वाला पीएम अगर चुप रहते हों तो उसे चुप्पी कहते हैं, मगर जो पीएम रोज बोलते हैं केवल उन मुद्दों पर चुप रह जाते हों जिस पर देश उनसे जानना चाहता है तो ऐसी चुप्पी को क्या केवल ‘मौन’ कहा जा सकता है। मन मोहन जरूर मौन मोहन थे, नरसिम्हाराव भी मौन ‘राव’ थे मगर नरेंद्र मोदी सिर्फ मौन’मोदी’ नहीं, उससे कहीं बढ़कर साबित हुए हैं।

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