राम जन्मभूमि विवाद : अधिग्रहीत ज़मीन लौटाने की याचिका महज चुनावी चाल?
केंद्र सरकार क्यों छोड़ना चाहती है गैर विवादित ज़मीन?
केंद्र सरकार ने क्यों किया था इस ज़मीन का अधिग्रहण?
क्या केंद्र सरकार की इस पहल से हल हो जाएगा मंदिर विवाद?
राम मंदिर निर्माण से जुड़े ये तीन सवाल इसलिए खड़े हुए हैं क्योंकि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर कहा है कि वह 67 एकड़ गैर विवादित जमीन मूल मालिकों को लौटाना चाहती है। इस ज़मीन में से 42 एकड़ हिस्सा राम जन्मभूमि न्यास के पास है जिसकी मर्जी भी केंद्र सरकार के साथ है।
हिन्दू संगठन खुश हैं कि केंद्र सरकार की इस पहल से राम मंदिर निर्माण का रास्ता खुलेगा। बीजेपी के नेता भी ऐसी ही आशा जताते हुए बयान दे रहे हैं। लेकिन, वास्तव में गैर विवादित जमीन राम मंदिर निर्माण शुरू कराने में बाधा नहीं है। अगर मूल विवाद हल हो, तो यह जमीन पक्षकारों को दी जा सकती है, यह बात पहले ही सुप्रीम कोर्ट कह चुका है।
अगर कोई यह सोचता है कि मूल विवाद के हल हुए बगैर इस ज़मीन पर मंदिर निर्माण या पूजा जैसी कोई शुरुआत की जा सकेगी, या फिर किसी कथित प्लान बी के तहत सरकार के चलने की मंशा है तो वह गलत है।
सिर्फ दो बातों पर गौर करें-
पहली बात
2002 में ऐसी कोशिश हुई थी जब गैर विवादित जमीन पर पूजा की पहल की गयी। तब असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने 67 एकड़ जमीन पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। यानी इस ज़मीन पर पूजा जैसी कोई पहल नहीं हो सकती।
दूसरी बात
2003 में ही सुप्रीम कोर्ट यह कह चुका है कि विवादित और गैर विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।
क्यों किया गया था 67 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण?
तत्कालीन नरसिम्हाराव सरकार ने 1993 में ज़मीन अधिग्रहण का मकसद यह बताया था कि विवाद के निपटारे के बाद इस जमीन पर कब्जे या उपयोग में कोई बाधा नहीं हो।
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट यह सवाल केंद्र सरकार से जरूर करेगा कि जब विवाद का निपटारा ही नहीं हुआ है तो ज़मीन लौटाने की पहल क्यों?
अधिग्रहीत ज़मीन लौटाने का क्या है नया आधार?
केंद्र सरकार को इस बात का भी जवाब देना होगा कि जब 1994 में इस्माइल फारूकी मामले में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि विवादित जमीन पर कोर्ट का फैसला आने के बाद ही गैर विवादित जमीन को उनके मूल मालिकों को लौटाने पर विचार हो सकता है, तो केंद्र सरकार किस नये आधार पर ज़मीन लौटाने का आग्रह कर रही है?
केंद्र सरकार ने खुद ही ठुकराई थी न्यास की मांग
एक और अहम बात ये है कि रामजन्म भूमि न्यास की मांग 1996 में खुद केंद्र सरकार ने ही ठुकरा दी थी।
हाईकोर्ट भी खारिज कर चुकी है न्यास की मांग
हाईकोर्ट ने भी 1997 में न्यास की मांग को खारिज कर दिया था।
जाहिर है केंद्र सरकार के लिए गैर विवादित जमीन को वापस लौटाने का औचित्य बताना आसान नहीं है। राम जन्म भूमि के विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट पर देरी का आरोप लगा रहे बीजेपी नेता और बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार खुद को इस मामले में तत्पर दिखाने की कोशिश भर कर रही है। मगर, ऐसा भी नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को मौका नहीं दिया हो। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को मध्यस्थता के जरिए विवाद को हल करने का अवसर दिया था, मगर तब सरकार इससे पीछे हट गयी थी। तो क्या ये माना जाए कि केंद्र सरकार की ताजा मुहिम महज चुनावी चाल है? लोगों को और भ्रमित करने वाला कदम है?