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अस्पताल में छिपा है डरपोक मसूद : एक थप्पड़ में बक दिए थे राज

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अजहर मसूद- भारत में आतंकवाद का मास्टरमाइंड, इंसानियत का गुनहगार। छिपकर बैठा है पाकिस्तान में, पाकिस्तान के शहर रावलपिंडी में, आर्मी अस्पताल है उसका ठिकाना। अस्पताल के भीतर भी कमरों में, कमरों के भीतर कमरे में छिपा बैठा है अजहर मसूद।

कहते हैं वह बीमार है। उसका इलाज चल रहा है। पाकिस्तानी सेना की सरपरस्ती में डॉक्टर उसका इलाज कर रहे हैं।

मगर, आतंकवाद के रोग से पीड़ित इंसान का इलाज अस्पताल में नहीं हो सकता। दूसरों का ख़ून बहाने वालों को ख़ून की चंद बोतलें चंगा नहीं कर सकतीं, जो बारूद के दुर्गंध में जीता हो उसे ऑक्सीजन ज़िन्दगी नहीं दे सकती, जो एके 56 और दूसरे स्वचालित हथियारों की गोलियां दागने का आदी हो, उसे डॉक्टर की गोलियों से कोई फर्क नहीं पड़ सकता।

जिसकी ज़िन्दगी विमान हाईजैक और निर्दोष यात्रियों की ज़िन्दगी से इम्पलांट हुई हो उसके लिए किडनी जैसे अंगों के ट्रांसप्लांट की ज़रूरत भी तुच्छ बातें लगती हैं।

ऐसे लोगों का इलाज नहीं हो सकता। सीधे मुक्ति दी जाती है। ज़िन्दगी से मुक्ति। क्योंकि इन्होंने न सिर्फ अपनी ज़िन्दगी को बोझ बना लिया है बल्कि दूसरों की जिन्दगी के लिए ये ख़तरा भी बन चुके हैं। ये जेल में रखे नहीं जा सकते क्योंकि तब कोई और अपहरण कांड होगा। किसी और की जान के बदले ये अपनी जान बचा लेंगे।

मसूद अजहर के नक्शे कदम पर इनके दो भतीजे भी चले थे। ताल्हा रशीद और उस्मान हैदर। दोनों की अकाल मौत हुई। दोनों का भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों क्रमश: 2017 और 2018 में वध हो चुका है। मसूद ने इंतकाम के लिए अब्दुल रशीद गाजी को भेजा। 40 जनाजों का ज़ख्म तो भारत को उसने दिया, मगर खुद उसका जनाजा उठते भी देर नहीं लगी। अब वही 40 जनाजे अजहर मसूद को ढूंढ़ रहे हैं और वह बीमार बनकर रावलपिंडी के अस्पताल में कमरों के तहखाने में छिपा है।

कहता तो वह खुद को दिलेर है। पुलवामा हमले के 8 दिन पहले भी ऑडियो टेप में उसने यही दावा किया था। मगर, यकीन मानिए उससे बड़ा डरपोक आपको खोजने से नहीं मिलेगा। बस एक थप्पड़ ही तो लगा था जब उसकी अक्ल ठिकाने आ गयी थी। धडाधड़ उगल बैठा था वह सारे राज।

सिक्किम पुलिस के पूर्व महानिदेशक अविनाश मोहनाने आईबी में कश्मीर डेस्क का नेतृत्व कर चुके हैं। उन्होंने कई बार मसूद से पूछताछ की थी। वह भी मानते हैं मसूद अजहर बहुत डरपोक है। कोट बलवाल जेल का किस्सा उन्हें याद है जहां बल प्रयोग की जरूरत ही नहीं पड़ी। सारी सूचनाएं तोते की तरह वह बताता चला गया।

यह अजहर मसूद का ही खुलासा था कि अफगानी आतंकी घाटी में आए हैं। कि हरकत उल मुजाहिदीन और हरकत उल जेहाद ए इस्लामी यानी हुजी का आपस में विलय हो गया था। उसी ने बताया था कि वह हरकत उल अंसार का सरगना था। सहारनपुर में बैठक करने की बात भी अजहर मसूद ने कबूल की थी। उसने यह भी बताया था कि वह पत्रकार बनकर कई देशों में जा चुका है और कश्मीर के लिए समर्थन मांग चुका है।

आखिर कोई डरपोक कब तक छिपा रह सकता है? परायी सेना कब तक उसका बचाव करेगी? अजहर मसूद को बिल से निकलना पड़ेगा। अस्पताल में छिपने की वजह शायद ये भी हो कि भारत की सेना आतंकी ठिकाने को तो नष्ट करती है मगर अस्पतालों को निशाना नहीं बनाती। अगर अजहर मसूद भारत के बारे में इतना जानता है तो वह भारतीय सेना के बारे में भी इतना जरूर जानता होगा कि पाताल में भी दुश्मन छिपा हो, तो उसे वह ढूंढ़ निकालती है। वैसे भी जब ओसामा के आतंक का अंत हो गया, तो अजहर मसूद तो बस उसके आंतकी नीतियों की नाजायज औलाद भर है।

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