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बीजेपी-शिवसेना गठबंधन में चला PK का दिमाग

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प्रशान्त किशोर राजनीति में जरूर किशोर हैं मगर रणनीति में वे प्रशान्त महासागर की गहराई रखते हैं। जिसने भी पीके यानी प्रशान्त किशोर की रणनीतिक गहराई में डुबकी लगाई, वह सत्ता के करीब जा पहुंचा।

पीके की चर्चा हम इसलिए कर रहे हैं कि भारतीय राजनीति मे 18 फरवरी को वो हुआ है जिसकी होनी को अनहोनी समझा जा रहा था। मगर, इस अनहोनी को होनी में बदलने के पीछे हैं पीके। 5 फरवरी को वे मुम्बई में उद्धव ठाकरे के घर मातोश्री पहुंचे थे। 18 फरवरी को नतीजा सामने है। बीजेपी और शिवसेना एक हो चुके हैं। एनडीए एकजुट है। लोकसभा ही नहीं विधानसभा में भी साथ लड़ने का संकल्प सामने है। बीजेपी और शिवसेना 25 और 23 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। विधानसभा चुनाव में आधी-आधी सीटों पर तालमेल होगा और बराबरी के हिसाब से महाराष्ट्र सरकार में जिम्मेदारी भी बंटेगी।

पीके के मातोश्री पहुंचने से पहले तक ऐसे समझौते की उम्मीद ख़त्म हो चुकी थी। बल्कि, कहा जाए कि जो चमत्कार एसपी और बीएसपी के बीच गठबंधन के रूप में देखने को मिला था उससे कहीं बड़ा चमत्कार है बदली हुई परिस्थितियो में बीजेपी और शिवसेना के बीच गठबंधन का ताजा एलान।

पीके ने जादू कर दिखाया। असर शिवसेना पर भी दिखा और बीजेपी पर भी। हर सीट पर अकेले चुनाव लड़ने का दम ठोंकने अमित शाह और हर बात में मोदी-शाह की आलोचना करने वाले उद्धव एक साथ प्रेस कॉन्फ्रेन्स करते दिखे। इसे चुनाव जीतने की ज़रूरत और इस ज़रूरत के वास्ते गठबंधन की मजबूरी बता रहे हैं राजनीतिक प्रेक्षक। मगर, इसका इल्म बीजेपी और शिवसेना को क्या पहले नहीं था? ये पीके ही थे जिन्होंने गठबंधन का दूसरा पक्ष दोनों को समझाया। वक्त को भांपने, अहंकार को छोड़ने और रुख को मोड़ने की ज़रूरत पीके ने ही समझायी।

शिवसेना कह रही थी कि महज दो लोकसभा सीट वाली जेडीयू के साथ बीजेपी बिहार में बराबरी का समझौता कर रही है तो महाराष्ट्र में उसके साथ सौतेला व्यवहार क्यों? बिहार में 22 सीटों के रहते हुए बीजेपी 17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार हो गयी, तो महाराष्ट्र में बीजेपी की एंठन क्यों नहीं टूटती?

पीके ने शिवसेना को कायदे से समझाया। बिहार में मुख्यमंत्री थे और हैं नीतीश कुमार। एनडीए से अलग होकर नीतीश ने महागठबंधन की सरकार बनायी। फिर, उस उपलब्धि को एनडीए में उड़ेल दिया। क्या नीतीश को बदले में एनडीए से 5 सीटें भी नहीं मिल सकतीं?

पीके ने उद्धव को समझाया कि आप एनडीए को लूज़र बनकर क्यों छोड़ें…राजनीति में हमेशा वक्त का इंतज़ार किया जाता है। एनडीए में आप बड़े भाई से छोटे हो गये। यहीं पर एक बार फिर बाजी पलटने की कोशिश करें। चुनाव के बाद अगर ताकत रहेगी, तभी आप ऐसी कोशिश कर पाएंगे।

पीके ने उद्धव को रास्ता दिखाया कि 2019 में क्या होने वाला है। नरेंद्र मोदी की बादशाहत ख़त्म होने वाली है। बीजेपी की ताकत कम होने वाली है। ऐसे में गठबंधन के दलों की ही तो चलेगी। अगर जेडीयू और शिवसेना मिलकर रहें तो बीजेपी नाम के इस घोड़े की नाक में नकेल डाली जा सकती है।

पीके ने यह भी समझाया कि अकेले लड़ने से सबसे ज्यादा नुकसान शिवेसना का होगा। तमाम सर्वे यही कह रहे हैं। इसलिए एनडीए छोड़ना शिवसेना के लिए कहीं से बुद्धिमानी नहीं है। बहरहाल शिवसेना पर पीके का जादू चल गया। यह बात 5 फरवरी के बाद 18 फरवरी आते-आते साफ हो गयी।

पीके के पक्ष में एक बात और है कि बीजेपी उन पर अटूट भरोसा करती है। गुजरात में सियासत के दिनों का साथ है। फिर खुद नीतीश कुमार मान चुके हैं कि उनकी पार्टी में उपाध्यक्ष की पोस्ट पीके को सौंपने से पहले अमित शाह ने इस बाबत हरी झंडी दे दी थी। अब शिवसेना को मनाते ही पीके की वैल्यू बीजेपी के लिए और बढ़ गयी है।

शिवसेना भी अंदर-अंदर धन्यवाद कर रही होगी। बीजेपी भी दोहरे नुकसान से बच गयी। खुली लड़ाई में बातचीत करना तक जहां असम्भव था वहां पीके ने दोनों को चुनाव मैदान में एक कर दिखलाया। अब एनडीए को महाराष्ट्र में न लोकसभा की सीटों का नुकसान होगा और न ही सबसे पुराने साथी के छिटकने का भय रहेगा। पीके ने एक चमत्कार कर दिखलाया है। राजनीति में ऐसे चमत्कार कम ही देखे जाते हैं।

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