दिल्ली विधानसभा चुनाव : AAP फिर करेगी सबको साफ
किसकी होगी सरकार?
कौन बनेगा सीएम?
हर विधानसभा चुनाव से पहले पूछे जाने वाले ये प्रश्न दिल्ली में भी पूछे जाने लगे हैं क्योंकि चुनाव आयोग ने एलान कर दिया है कि दिल्ली में 8 फरवरी को वोटिंग होगी, 11 फरवरी को नतीजे आएंगे। मगर, दिल्ली के लिए प्रश्न का उत्तर देना मुश्किल नहीं है।
एबीपी-सी वोटर का सर्वे
दिल्ली विधानसभा
कुल सीट 70
AAP 59
BJP 08
CONG 03
एबीपी-सी वोटर का ताजा सर्वे कह रहा है कि जनवरी के पहले हफ्ते तक जनता का मूड ये है कि तुरंत चुनाव हो जाएं तो आम आदमी पार्टी 70 में से 59 सीटें जीत सकती है। इसका मतलब ये है कि 2015 के मुकाबले 8 सीटों का नुकसान होगा। अभी आम आदमी पार्टी के पास 62 सीटें हैं क्योंकि चार अयोग्य हो चुके हैं और एक स्थान पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने बाजी मारी थी। इससे तुलना करें तो आम आदमी पार्टी को 3 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है। एबीपी-सी वोटर के सर्व में बीजेपी को 8 और कांग्रेस को 3 सीटें दिखायी गयी हैं।
यह सर्वे कोई अंतिम बात नहीं। चुनाव की प्रक्रिया से पहले का अनुमान मात्र है यह। अभी प्रत्याशी घोषित नहीं हुए हैं। कोई गठबंधन सामने नहीं आया है। चुनाव प्रचार का दौर शुरू नहीं हुआ है। मोदी फैक्टर, केजरीवाल फैक्टर, प्रियंका-राहुल फैक्टर जैसे फैक्टर का आना बाकी है। यह भी तय होना बाकी है कि स्थानीय मुद्दा या राष्ट्रीय मुद्दा क्या चलने वाला है।
फिर भी एक बात साफ है कि केजरीवाल सरकार के लिए एंटी इनकम्बेनसी का कोई बड़ा फैक्टर दिल्ली में नहीं चल रहा है। विपक्षी दल चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस, कोई बड़ा आंदोलन खड़ा करने में कामयाब नहीं हो सकी है। अगर मुद्दों की बात करें तो जो कुछ स्थानीय मुद्दे हावी रह सकते हैं उनमें शामिल हैं
दिल्ली के मुद्दे
अवैध कॉलोनियों को पक्का करना
बीजेपी और आम आदमी पार्टी दोनों में इस बात की होड़ है कि इसका श्रेय लिया जाए। यह मुद्दा मतदाताओं को प्रभावित करेगा।
दिल्ली के मुद्दे
शिक्षा
शिक्षा आम आदमी पार्टी का मजबूत पक्ष है। यहां उसके पास गिनाने को सरकारी स्कूलों का प्रदर्शन है। इसे खुद आप बढ़च-चढ़कर मुद्दा बनाएगी।
दिल्ली के मुद्दे
स्वास्थ्य
बीजेपी का आरोप है कि केजरीवाल सरकार ने आयुष्मान योजना को दिल्ली में लागू नहीं होने दिया है तो दिल्ली सरकार का कहना है कि उसने दिल्ली से डेंगू से निजात दिलायी है। इसके अलावा मोहल्ला क्लीनिक के जरिए इस क्षेत्र में क्रांति लेकर आयी है।
दिल्ली के मुद्दे
मोदी बनाम केजरीवाल
मुद्दा मोदी बनाम केजरीवाल भी रहने वाला है क्योंकि बीजेपी ने कोई चेहरा सामने नहीं किया है। चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में केजरीवाल भारी पड़ रहे हैं मोदी पर। इसकी वजह शायद स्थानीयता है।
दिल्ली के मुद्दे
‘फ्री’ की सियासत
‘फ्री’ वाई-फाई, फ्री पानी-बिजली, महिलाओं के लिए फ्री मेट्रो जैसे मुद्दे भी चुनाव में सर चढ़कर बोलेंगे। बीजेपी का कहना है कि जनता को फ्री नहीं, क्वालिटी की सर्विस चाहिए। आम आदमी पार्टी सिर्फ लुभा रही है। वहीं आप का दावा है कि वही जन हित के काम कर रही है।
दिल्ली के मुद्दे
विकास
विकास का मुद्दा सभी दलों के लिए अहम है। कहने का तरीका अलग है। बीजेपी सबका साथ, सबका विकास के नारे को चमका रही है तो आम आदमी पार्टी अपने कार्यकाल की उपलब्धियों को। वहीं, कांग्रेस के पास भी शीला दीक्षित के 10 साल का कार्यकाल है जिसे वह विकास युग बता रही है।
दिल्ली के मुद्दे
राष्ट्रीय मुद्दे
राष्ट्रीय मुद्दे मतदाताओं पर कितना असर करेंगे, पता नहीं। मगर, बीजेपी किसी भी चुनाव में इससे नहीं हटती। राजधानी होने की वजह से राष्ट्रीय मुद्दों पर विरोध का केन्द्र भी यही स्थान होता है। जेएनयू में हिंसा, जामिया में हिंसा, सीएए, धारा 370, राम मंदिर जैसे मुद्दों पर एक गोलबंदी जरूर देखने को मिलेगी।
दिल्ली के मुद्दे
सिख विरोधी दंगे
दिल्ली में कोई चुनाव नहीं होता जिसमें सिख विरोधी दंगे उठाए नहीं जाते। कांग्रेस को परेशान करने वाला यह मुद्दा बीजेपी नये सिरे से जरूर उठाएगी- यह तय है। फिर भी कांग्रेस को राहत है कि पंजाब में उसकी सरकार है।
मुद्दों के आईने में भी आम आदमी पार्टी भारी पड़ती दिख रही है। राष्ट्रीय मुद्दे बीजेपी के लिए काम नहीं कर रहे हैं। झारखण्ड ताजा उदाहरण है जहां चुनाव होते वक्त राम मंदिर से लेकर सीएए का मुद्दा चरम पर था, लेकिन बीजेपी चुनाव हार गयी। राष्ट्रीय मुद्दों पर नफा-नुकसान में बीजेपी और कांग्रेस होती है, आम आदमी पार्टी का इस पर बहुत फर्क नहीं पड़ता। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का दिल्ली में दूसरे नम्बर की पार्टी बनना और आम आदमी पार्टी का तीसरे नम्बर पर रहना इसका उदाहरण है। मगर, विधानसभा चुनाव की बात अलग है।
एक बात साफ तौर पर दिख रही है कि आम आदमी पार्टी के पक्ष में भावनाएं हैं, तो 21 साल से सत्ता से दूर बीजेपी के लिए जनता कोई ग्रीन सिग्नल देती नहीं दिख रही। कांग्रेस को दोबारा सत्ता में सौंपने का मूड दूर-दूर तक नज़र नहीं आता। ऐसे में विधानसभा में आप के लिए पुराना प्रदर्शन दोहराना नामुमकिन जरूर है लेकिन यह बात पक्के तौर पर कही जा सकती है कि चुनाव मैदान में उसके आसपास भी कोई नहीं है। बीजेपी और कांग्रेस बस अपनी गिनती सुधार सकती है।