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JNU हिंसा : बेनकाब होंगे नकाबपोश?

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जेएनयू में कौन थे वे नकाबपोश? जो आंधी की तरह आए, तूफ़ान की तरह चले गये। बच गयी बस चीख-पुकार। फूटे हुए सिर। टूटे हुए हाथ-पैर, दरवाजे, खिड़कियां। मगर, इन्ही अवशेषों पर दोबारा खड़ा होने लगा प्रतिरोध। सियासत तो होनी ही थी। वह होती रहेगी क्योंकि जब सियासत होती है तभी पैदा होते हैं नकाबपोश और उसकी हैवानियत।

नकाबपोश कब होंगे बेनकाब?

नकाबपोश के हमले में जेएनयू स्टूडेन्ट्स यूनियन की अध्यक्ष आइशा घोष घायल हो गयीं। सिर फूटे, हाथ भी टूटे। उन्होंने आरोप लगाया कि उन पर हमला एबीवीपी के लोगों ने कराया। बाहर से हमलावरों को बुलाया। एक समय लगा कि उनकी मॉब लिंचिंग में मौत हो कर रहेगी। मगर, वह बच गयीं। करीब 35 छात्र हमले में घायल हुए। एक और वीडियो सोशल मीडिया में आया जिसमें खुद आइशा घोष नकाबपोश का नेतृत्व कर रही थीं। एबीवीपी के छात्रों को पीटा जा रहा था।

नकाबपोशों की दोनों तस्वीरें जेएनयू के भीतर छात्रों के दो गुटों के बीच संघर्ष को बयां करते हैं। उस ख़ौफ को भी बयां करते हैं जो जेएनयू के भीतर पसरा है। ये तस्वीरें जेएनयू प्रशासन की भी पोल खोलती हैं और कैम्पस की सुरक्षा में खड़े सुरक्षाबलों की भी।

रजिस्ट्रेशन का विरोध जेएनयू में फीस बढ़ोतरी के विरोध में आंदोलन जारी रहते ढाई महीने हो चुके हैं। इस बीच नये सेमेस्टर में रजिस्ट्रेशन शुरू हो चुका है। आंदोलनकारी इसका भी विरोध कर रहे हैं। इसी विषय पर एबीवीपी और लेफ्ट के छात्रों में विरोध बढ़ता गया। लेफ्ट के छात्रों पर रजिस्ट्रेशन के विरोध में सर्वर रूम में तोड़फोड़ के आरोप भी लगे हैं। रजिस्ट्रेशन का विरोध करने को लेकर लेफ्ट के छात्रों का कहना है कि जेएनयू में कभी भी पिछले सेमेस्टर का रिजल्ट क्लियर हुए बगैर रजिस्ट्रेशन की परम्परा नहीं रही है। इस बार जेएनयू प्रशासन जबरदस्ती कर रहा है। इसलिए विरोध बढ़ता जा रहा है। वहीं, एबीवीपी का कहना है कि नये सेमेस्टर में छात्रों का रजिस्ट्रेशन नहीं होगा तो शिक्षण व्यवस्था ही चरमरा जाएगी।

रजिस्ट्रेशन,फीस बढ़ोतरी ही नहीं है मुद्दा

मुद्दा सिर्फ रजिस्ट्रेशन, फीस बढ़ोतरी और दो गुटों के बीच संघर्ष का नहीं है। जेएनयू के छात्र जब सीएए और एनआरसी का विरोध करते हैं तो इस विरोध प्रदर्शन से देश की राजनीति लामबंद होने लगती है। जेएनयू के छात्र जब जामिया में छात्रों की पिटाई का विरोध करते हैं तो देश की तमाम यूनिवर्सिटी में विरोध एकजुट होने लगता है। जेएनयू छात्रों की यही ताकत भी है और यही वह वजह भी जिस कारण वहां रविवार की घटना घटी।

बाहरी लोगों ने हमला किया?

जेएनयू के कैम्पस में बाहर से लोग आए। लाठी-डंडे, सरिया, पत्थरों से लैस होकर। कैसे यह सम्भव हुआ? किसने कैम्पस में घुसने में उनकी मदद की? क्योंकि बगैर एन्ट्री के कोई कैम्पस में प्रवेश नहीं कर सकता। एन्ट्री से पहले पहचान पत्र, मिलने वाले का नाम-पता, उसकी सहमति समेत तमाम औपचारिकताएं जरूरी होती हैं।

षडयंत्रपूर्वक हुआ हमला?

नकाबपोश लोगों ने जेएनयू में जिन छात्रों की पिटाई की, उनमें छात्र नेता भी शामिल हैं। कद्दावर हैं। खुद उनके पास समर्थकों की बड़ी फौज है। फिर भी उनकी पिटाई हुई तो इसलिए कि हमला सुनियोजित और षडयंत्रपूर्वक हुआ। नकाबपोश हमले को अंजाम देने के बाद जब बाहर निकले तो पुलिस के पास से बिना किसी प्रतिरोध के वे निकलने में कामयाब रहे। ऐसा तब हुआ जबकि सोशल मीडिया और टेलीविजन चैनल के माध्यम से ख़बरें बाहर निकल चुकी थीं। हमलावरो ने करीब साढ़े तीन घंटे तक कैम्पस में उत्पात मचाया। खास बात यह भी है कि निकलते वक्त स्ट्रीट लाइट भी गुल हो गयी। क्या यह संयोग था?

बाहर से नहीं मिल सकी मदद

जब नकाबपोश हमले कर रहे थे तब बाहर से कोई मदद अंदर न आए, इसकी भी पूरी व्यवस्था थी। मेन गेट पर तैनात पुलिसकर्मी इसे सुनिश्चित कर रहे थे। योगेन्द्र यादव के साथ धक्का-मुक्की देश ने देखा। ऐसा करने वाले लोग ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। लेफ्ट छात्रों का आरोप है कि एम्बुलेंस को भी कैम्पस के अंदर जाने नहीं दिया गया। दिल्ली पुलिस का बहाना दिल्ली पुलिस ने एक बयान में कहा है कि जेएनयू प्रशासन ने कैम्पस में घुसने के लिए उन्हें लिखित इजाजत नहीं दी। यह सफाई इसलिए काबिले गौर है क्योंकि नकाबपोशों की हिंसा के दौरान 90 से ज्यादा कॉल 100 नम्बर पर किए गये थे मगर पुलिस की मदद छात्रों को नहीं मिली। सवाल ये है कि क्या पुलिस ने स्थिति की गम्भीरता जेएनयू प्रशासन को नहीं बतायी? सवाल यह भी है कि जेएनयू प्रशासन ने क्यों पुलिस से मदद नहीं मांगी?

घायल आइशा घोष पर ही FIR

घटना की जांच की जा रही है। मगर, जांच की दिशा देखिए कि नकाबपोशों में से किसी की भी न पहचान हुई है, न गिरफ्तारी। जबकि, तमाम नकाबपोशों की पहचान बताते दावे सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं। उल्टे पुलिस ने घायल छात्र नेता आइशा घोष के खिलाफ ही 3 एफआईआर कर दी है। यानी ये कार्रवाई उस हिंसा से पहले हुई मारपीट और तोड़फोड़ की घटना को लेकर हुई है। चिन्ता में है देश जेएनयू में नकाबपोश से हमला कराने की सियासत ने पूरे देश को चिंता में डाल दिया है। दोषी चाहे जो हो, नकाबपोश चाहे किसी भी छात्र संगठन या दल से हो उन्हें बेनकाब किया जाना जरूरी है। आज तक वे नकाबपोश भी बेनकाब नहीं हो पाए हैं जिन्होंने जेएनयू कैम्पस में देश विरोधी नारे लगाए थे। सवाल ये है कि क्या इस बार नकाबपोशों के नकाब उतार पाएगी पुलिस?

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