मोदी को हराने का नया फ़ॉर्मूला
शरद पवार देश के कद्द्दावर नेता हैं। नीति निर्धारक नेता हैं। वे कुछ बोलते हैं तो माना जाता है कि रणनीतिक बोल रहे हैं। विरोधी भी उन्हें गम्भीरता से लेते हैं। यही वजह है कि मोदी सरकार को 2019 में परास्त करने के लिए शरद पवार के फॉर्मूले को अहमियत दी जा रही है।
शरद पवार का फॉर्मूला नम्बर 1
प्रधानमंत्री पहले से तय नहीं होगा शरद पवार ने कहा है कि जिस तरह इंडिया शाइनिंग को परास्त किया गया था, उसी तरह से नरेन्द्र मोदी को भी परास्त किया जा सकता है। तब भी विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए कोई उम्मीदवार नहीं था, इस बार भी नहीं होगा।
शरद पवार का फॉर्मूला नम्बर 2
जो जहां मजबूत है उसकी मदद करो। शरद पवार का दूसरा फॉर्मूला ये है कि जो पार्टी जिस राज्य में ताकतवर हो, उसे दूसरी पार्टियां सहयोग करें। इसका मकसद ये है कि अधिक से अधिक लोकसभा सीट विपक्ष के खाते में किए जाएं।
शरद पवार का फॉर्मूला नम्बर 3
जिसके पास ज्यादा सीट उसका हो प्रधानमंत्री शरद पवार का मानना है कि अधिक से अधिक सीटें हासिल कर लेने के बाद सरकार बनाने की स्थिति में आने पर प्रधानमंत्री उसी दल से हो जिसके पास ज्यादा सीटें हों।
शरद पवार के फॉर्मूले में दम तो है लेकिन यह कांग्रेस को परेशान करने वाला है। एक तरह से यह 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व को नकारता है। शरद पवार का फॉर्मूला उस सोच को भी व्यक्त करता है जो राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ना चाहती।
यह फॉर्मूला उन क्षेत्रीय आकांक्षाओं को भी हवा देता है जो खुद को केन्द्रीय राजनीति में मजबूत करना चाहती हैं और पीएम की कुर्सी तक पहुंचना चाहती हैं। यह आकांक्षा खुद शरद पवार की भी है, मायावती और अखिलेश यादव की भी। महागठबंधन की सबसे ज्यादा चर्चा हुई है लेकिन यह अभी तक अगर नहीं बन पाया है तो इसलिए क्योंकि अगर महागठबंधन बनेगा तो नेतृत्व भी तय करना होगा। इसी संकट का हल है शरद पवार का फॉर्मूला।
शरद पवार के फॉर्मूले से सबसे ज्यादा फायदा बहुजन समाज पार्टी की मायावती को होगा, जबकि सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को। बहुजन समाज पार्टी अपने वोट प्रतिशत के आधार पर महाराष्ट्र से लेकर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब सरीखे राज्यों में कांग्रेस की कीमत पर ही अपना विस्तार करने का इरादा रखती है।
एनसीपी भी कांग्रेस को उतना ही मजबूत देखना चाहती है जिससे उसकी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक ली जाए। चूकि राहुल गांधी ने भी यह संकेत दे दिया है कि चुनाव के बाद प्रधानमंत्री का मुद्दा तय होगा और यह लोकतांत्रिक आधार पर होगा, तो ऐसे में प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष चुनाव से पहले लड़ने-भिड़ने नहीं जा रहा है, ये तय है।
यूपी में मिलकर चुनाव लड़ने की वजह से कांग्रेस को जो फायदा होगा उसकी क़ीमत वसूलना चाहती है बीएसपी। यही फायदा शरद पवार भी उठाना चाहते हैं और अखिलेश व दूसरे नेता भी। शरद पवार और मायावती की मुलाकात और फिर पवार के ताजा फ़ॉर्मूले को इसी संदर्भ में विपक्ष के भीतर कांग्रेस को घेरने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। जिस राज्य में जो मजबूत है उसका समर्थन ऐसा जुमला है जिसमें शरद पवार को सभी क्षेत्रीय दलों का समर्थन मिल जाता है।
ऐसा भी नहीं है कि पवार का फॉर्मूला कांग्रेस के बिल्कुल ख़िलाफ़ ही हो। कांग्रेस चाहे तो इस फॉर्मूले को अपने अनुकूल बना सकती है लेकिन इसके लिए उसे मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बेहतरीन प्रदर्शन करना होगा जहां बीजेपी से उसका सीधा मुकाबला होने जा रहा है। बिहार में आरजेडी, झारखण्ड में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा जैसी पार्टियों का कांग्रेस को पूरा समर्थन है।
खुद अखिलेश यादव भी वक्त आने पर कांग्रेस की मदद कर सकते हैं। ममता बनर्जी के लिए भी कांग्रेस को मदद करने के अलावा विकल्प नहीं है। कांग्रेस की कोशिश ये होगी कि ‘जिस राज्य में जो मजबूत है’ वाले फॉर्मूले को भी न काटा जाए और महागठबंधन बनाने की कोशिश भी जारी रखी जाए। आम चुनाव से पहले तीन राज्यों में अगर कांग्रेस अपना दमखम दिखा पायी, तो तस्वीर बदल जाएगी। कांग्रेस को उसी वक्त का इंतज़ार है।