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कर्ज़ माफ़ी नाकाफ़ी : किसानों की बदहाली का इलाज हरगिज़ नहीं

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मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में किसानों के कर्ज माफ़ हो गये हैं…असम ने भी इसी रास्ते पर चलते हुए कर्जमाफी का एलान कर दिया है….अब राहुल गांधी ने पूरे देश में किसानों का कर्ज माफ करने और जब तक ऐसा नहीं होता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैन से नहीं सोने देने का एलान कर दिया है।

अचानक भारतीय राजनीति किसानों की कर्जमाफी पर आ टिकी है। कर्जमाफ़ी चुनाव जीतने का मंत्र बन कर सामने आया है। आम चुनाव से पहले मोदी सरकार भी कर्जमाफ़ी के मंत्र को फूंकने का टोटका आजमाने का मौका छोड़ना नहीं चाहती। लिहाज़ा ख़बर है कि चुनाव में देशभर में किसानों के 4 लाख करोड़ रुपये की कर्ज माफी के साथ बीजेपी 2019 के लोकसभा चुनाव में उतरने जा रही है।

यह कैसी स्पर्धा है! सरकार एक डॉक्टर की तरह होती है। वह इलाज करती है। अगर डॉक्टर जड़ से बीमारी दूर करने बजाए मरीज को महज तात्कालिक पेन किलर देने की आदत डाल दे, तो क्या मरीज का भला हो सकता है? क्या बीमारी दूर हो सकती है?

किसानों की बीमारी का इलाज

उत्पादन और उत्पादकता बढ़े

किसान बाज़ार से जुड़ें

बिचौलियों से किसानों को बचाया जाए

किसानों में मोलभाव करने की ताकत आए

ऐसा कैसे होगा? निश्चित रूप से खेती में निवेश करने होंगे। खेती को आधुनिक बनाना होगा। मौसम की निर्भरता से खेती को आज़ाद कराना होगा। एक समयबद्ध योजना और उसके क्रियान्वयन को सुनिश्चित करके ही ऐसा किया जा सकता है।

अगर हम सरकारों को डॉक्टर कह रहे हैं और किसानों को मरीज, तो देश की राजनीतिक व्यवस्था को हम चिकित्सा विज्ञान कह लेते हैं जो अचानक अनुसंधान रहित हो गयी लगती है। हमारे देश की राजनीति देश को दिशा देने के बजाए उसकी दुर्दशा की वजह बनती दिख रही है।

2008 में देशव्यापी कर्जमाफी के बाद 2009 में यूपीए सरकार दोबारा सत्ता में आयी थी। मगर, उस कर्ज माफ़ी पर सीएजी की रिपोर्ट पर गौर करें तो

2008 में कर्ज़माफी, बल्कि कहिए बंदरबांट

  • 13.5 % पात्र किसानों को ऋणमाफी का लाभ नहीं मिला
  • 8.5 % अपात्र लोगों को ऋणमाफी से फायदा पहुंचा
  • 6% किसानों को उतना फायदा नहीं हुआ जिसके वे हकदार थे
  • 34.3% मामले ऐसे रहे जिनमें बगैर किसी प्रमाण के ही ऋण माफ कर दिए गये
  • ऐसे लोगों के भी लोन माफ हुए जिन्होंने कार लोन या पर्सनल लोन ले रखा था
  • तय सीमा अवधि से अलग लोन लेने वालों के लोन भी माफ किए गये
  • ऋणमाफी की रकम से ही माइक्रो फिनान्स इंस्टीच्यूशन को लोन दे दिए गये
  • कई मामले ऐसी भी रहे कि बैंक ने पैसे रख लिए, किसानों को दिए ही नहीं
  • ऐसे भी उदाहरण रहे कि जिन्हें 25 फीसदी माफ होना था, उनके पूरे लोन माफ हो गए
  • छत्तीसगढ़ में जितने लोगों को लोन दिए गये उससे अधिक लोगों के लिए ऋणमाफी हो गयी
  • दस्तावेज में हेराफेरी के रिकॉर्ड भी मिले
  • तब विपक्ष में रही बीजेपी ने 10 हज़ार करोड़ के घोटाले का आरोप लगाया था। बात साफ है कि जो रकम किसानों की कर्जमाफ़ी के लिए थी, उसकी जमकर बंदरबांट हुई।

एक बार फिर 2018 में वही स्थिति है। इस बार उस मोदी सरकार पर ऐसा करने का दबाव है जो किसानों की आमदनी दुगुनी करने की बात कह रही थी। दरअसल किसानों की स्थिति विगत पांच वर्षों में और बुरी हो चुकी है।

किसानों की खुदकुशी :  2005 से 2015

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट बताती है कि कर्ज के बोझ तले किसानों में खुदकुशी की दर लगातार बढ़ रही है।  2005 से 2015 के बीच 10 साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में हर एक लाख की आबादी पर 1.4 से 1.8 किसान खुदकुशी कर रहे हैं।

किसानों ने महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश सरीखे राज्यों में जिस तरह आक्रोश दिखाया है, उससे लगता है कि स्थिति और बिगड़ी है। कभी दूध बहाकर, कभी अपनी फसल जलाकर, कभी सड़कों पर टमाटर फेंककर, तो कभी आलू-प्याज फेंककर किसानों ने अपने गुस्से का इजहार किया है। ये स्थिति तब है जबकि इनमें से कई राज्यों में ऋण माफ किए गये हैं।

2014 से 2018 के बीच जहां माफ किए गये हैं कर्ज

मध्यप्रदेश                38000 करोड़

छत्तीसगढ़                   6100 करोड़

राजस्थान                  18000 करोड़

असम                            600 करोड़

आन्ध्र प्रदेश              24000 करोड़

तेलंगाना                   17000 करोड़

तमिलनाडु                 6000 करोड़

महाराष्ट्र                    34000 करोड़

उत्तर प्रदेश               36000 करोड़

राजस्थान                   8000 करोड़

कर्नाटक                   34000 करोड़ रुपये

अर्थशास्त्री अरविन्द पनगढ़िया कर्जमाफी की इस होड़ से चिन्तित हैं, वे कहते हैं

कर्जमाफी नहीं है समाधान

एक बुरी स्पर्धा शुरू हो चुकी है। अगर ऋण माफी से किसानों की समस्या हल होती, तो इसका स्वागत किया जा सकता था। लेकिन, अगर आज़ादी के 70 साल बाद भी किसान परेशान हैं तो इसका हमें समाधान खोजने की जरूरत है।

अब केंद्र सरकार के पास समय कम है। अगले साल मई तक नयी सरकार का गठन होना है। लिहाज़ा 4 लाख करोड़ की कर्जमाफी का मेगा प्लान लेकर मोदी सरकार चुनाव में उतरने की तैयारी में है। 26 करोड़ 30 लाख किसान और उनसे जुड़े परिजनों को लुभाने का इससे आसान कोई और तरीका नहीं हो सकता। भले ही देश की अर्थव्यवस्था को इसका चाहे जितना खामियाज़ा भुगतना पड़े। और, खुद किसानों को भी इससे कोई दूरगामी फायदा न होने वाला हो।

सबसे ज्यादा जरूरी है ये है कि खर्च वहां किए जाएं जिससे खेती लाभदायक हो सके। इनमें शामिल हैं

खेती कैसे हो लाभदायक

  • अनाज को सुरक्षित रखने के लिए स्टोरेज बनाना
  • बाज़ार तैयार करना
  • सड़कों का निर्माण
  • कृषि उत्पाद आधारित उद्योग बनाना
  • ताकि बाय प्रॉडक्ट पैदा हों और खेती का व्यावसायिक इस्तेमाल किया जा सके।

यहां यह भी याद दिलाने की जरूरत हो आती है कि इसी देश में सरदार पटेल की मूर्ति बनाने पर 3500 करोड़ रुपये का ख़र्च भी किया जाता है। इस रकम से असम में किसानों का कर्ज 6 बार माफ किया जा सकता था। मगर, सही न मूर्ति पर हजारों करोड़ का खर्च करना है, न ही कर्जमाफी के तौर पर पेनकिलर देकर किसानों की सेहत बिगाड़ना है। असल सवाल ये है कि देश की राजनीति मूल समस्याओं को हल करने के प्रति कब संवेदनशील होगी?

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