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शाह ने नहीं ली हार की जिम्मेदारी

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दिल्ली में बीजेपी की करारी हार हुई। 70 विधानसभा सीटों में महज 8 सीटें पार्टी जीत सकी। पिछले चुनाव से पार्टी को 5 सीटें अधिक मिली हैं। मगर, कुल सीट की तुलना में यह 11.4 प्रतिशत है। सीटों के हिसाब से कहा जा सकता है कि बीजेपी फेल हो गयी।

वोट जरूर बढ़े। पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले 6.5 फीसदी वोट ज्यादा मिले। मगर, लोकसभा चुनाव के मुकाबले दिल्ली में करीब 18 फीसदी वोट घट गये।

आंकड़ों की ये तुलना बीजेपी की हार को बयां नहीं करते। बीजेपी की करारी हार को समझना हो तो अमित शाह की नज़र से दिल्ली चुनाव को देखना होगा जब वे चुनाव प्रचार कर रहे थे। अमित शाह ने दावा किया था कि उनकी पार्टी 45 सीटें जीतेंगी। मनोज तिवारी तो आखिरी समय तक 48 सीटें मिलने की उम्मीद जताते रहे।

सारे पूर्वानुमानों में भी बीजेपी को 20 से 30 सीटें मिलती दिखलायी गयी थीं। मगर, एक्जिट पोल आते-आते बाजी पलट चुकी थी। ऐसा क्या हुआ? क्यों नहीं चला अमित शाह का जादू?

अमित शाह का जादू इसलिए कि बीजेपी ने दिल्ली में कोई चेहरा नहीं दिया था। खुद अमित शाह ने चुनाव की कमान सम्भाल ली थी। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अमित शाह ने 52 रोड शो और सभाएं अकेले की। बड़ी रैलियों के बजाए नुक्कड़ सभाओं पर जोर दिया।

शाहीन बाग को करंट लगाने के लिए ईवीएम का बटन दबाने वाला बयांन भी उन्हीं का था। पूरे चुनाव में सीएए-एनआरसी को मुद्दा बनाने की कोशिश हुई। वास्तव में अमित शाह से प्रेरित होकर ही कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर या प्रवेश वर्मा के बयान सामने आए। प्रेरित होने की बात इसलिए कही जा सकती है क्योंकि चुनाव आयोग की ओर से गलत ठहराए जाने के बावजूद किसी बीजेपी नेता ने उनके बयानों को गलत नहीं ठहराया। इसके बजाए उन बयानों का बचाव किया।

अब अमित शाह को समझ में आ रहा है कि जहरीले बयानों की वजह से बीजेपी की हार हुई। मगर, यह स्वीकारोक्ति भी अमित शाह की असफलता को बयां करती है। जो बात अमित शाह नहीं मान रहे हैं या यूं कहें कि जिस वजह से बीजेपी की दिल्ली में हार हुई, उन पर गौर करें-

BJP की हार के ये रहे 5 कारण

  • दिल्ली में BJP का कोई चेहरा नहीं था
  • बाहरी नेताओं का जमावड़ा लगाया
  • स्थानीय मुद्दों पर AAP को घेर नहीं सकी
  • विकास का कोई रोडमैप सामने नहीं रखा
  • नफ़रत की सियासत को हवा दी

पूरे चुनाव की कमान अमित शाह ने सम्भाल रखी थी। घर-घर पर्चा बांटने भी वे खुद निकले। कम से कम 30 बार अमित शाह ने ऐसे भाषण दिए जिसमें उन्होंने कहा कि ईवीएम का बटन इतनी जोर से दबाओ कि करंट शाहीन बाग को लगे।

बीजेपी ने 6577 सभाएं कीं। मतलब ये कि मेहनत में कोई कोर-कसर बाकी नहीं था। फिर भी अगर बीजेपी हारी है तो यह सिर्फ तीन युवा नेताओं की बदजुबानी नहीं है। खुद अमित शाह का बयां भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश का हिस्सा ही था। अच्छा होता कि अमित शाह खुद सामने आकर हार की जिम्मेदारी लेते। ऐसा करने के बजाए उन्होंने ठीकरा तीन युवा नेताओँ पर फोड़ दिया है।

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