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अनजान या नादान हैं इमरान ख़ान?

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पुलवामा हमले का सबूत मांग रहा है पाकिस्तान। धमकी दे रहा है पाकिस्तान। युद्ध हुआ तो जवाब देगा पाकिस्तान। पाकिस्तान के प्रधानमत्री इमरान ख़ान पूछ रहे हैं कि पुलवामा हमले से पाकिस्तान को क्या फायदा। पाकिस्तान क्यों भारत में कराएगा हमला? पाकिस्तान पर क्यों लग रहे हैं इल्ज़ाम?

इमरान ख़ान कह रहे हैं कि भारत पर हमला करने के लिए कोई वजह नहीं है पाकिस्तान के पास। गजब बात कर रहे हैं इमरान। तस्वीर क्रिक टैकर।

ऐसा लगता है कि नादान हैं इमरान। किसी दूसरी दुनिया से अवतरित हुए हैं। उन्हें नहीं पता कि जैश-ए-मोहम्मद ने पुलवामा में हमले की ज़िम्मेदारी ली है। उन्हें नहीं पता कि जैश-ए-मोहम्मद का प्रमुख अजहर मसूद पाकिस्तान में है। वो नहीं जानते कि अजहर मसूद कंधार विमान अपहरण के बाद निर्दोष यात्रियों की ज़मानत पर छुड़ाया गया था।

ऐसा लगता है कि इमरान ख़ान को यह भी नहीं मालूम कि अजहर मसूद, हाफिज सईद जैसे बहरूपिए आतंकवादियों को पाकिस्तान की सरज़मीं पर ही पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की सरपरस्ती मिली हुई है। ये लोग पाकिस्तान की सरजमीं से ही आतंकी तैयार करते हैं, उन्हें भारत में आतंक पैदा करने के लिए भेजते हैं।

इमरान ख़ान को यह भी दिखाई नहीं पड़ता कि अजहर मसूद के दो-दो भतीजे तल्खा रशीद और हैदर उस्मान भारत में आतंक मचाने आए थे और यहां मारे गये। वे यह भी नहीं जानते कि मसूद इंतकाम की आग में जल रहा है और पाकिस्तान की सेना उसका भारत के ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर रही है। इमरान इस बात की भी अनदेखी कर रहे हैं कि आतंक की फैक्ट्री बन चुका है पाकिस्तान।

अब्दुल रशीद गाज़ी तो ताज़ा उदाहरण है जिसे पुलवामा में ही भारतीय सेना ने सीआरपीएफ पर हमले के 100 घंटे के भीतर मार गिराया। फिर भी इमरान कहते हैं कि सीआरपीएफ पर हमला वहीं के युवक ने किया, पाकिस्तान को ज़िम्मेदार बेवजह ठहराया जा रहा है।

अब्दुल रशीद गाज़ी को क्यों नहीं पहचान रहे है इमरान ख़ान? क्या इमरान मुम्बई अटैक को भी भूल गये? कसाब को भी भूल गये? हमने कसाब को बिरयानी खिला-खिला कर पूरी न्यायिक प्रक्रिया का इस्तेमाल किया, फिर उसे फांसी दी। कसाब को भी कभी पाकिस्तान ने अपना नागरिक मानने से मना कर दिया था।

दाऊद इब्राहिम से लेकर अजहर मसूद और हाफिज सईद तक के बारे में पाकिस्तान हमेशा सबूत मांगता आया है। क्या इस बात से अनजान हैं इमरान ख़ान। क्या इस तरह से वे बना रहे है नया पाकिस्तान?

इमरान ख़ान की भाषा वही है जो वहां के पिछले हुक्मरान की हुआ करती थी। फर्क इसलिए नहीं है कि ज़ुबान सेना की रहती आयी है। वे वही पढ़ते हैं जो सेना कहती है। 2008 के मुम्बई हमले से लेकर पठानकोट और उरी तक हर हमले के बाद भारत ने सबूत दिए। मगर, जवाब रटा-रटाया होता है और सबूत चाहिए। जो सबूत दिए गये है वो नाकाफी हैं। सबूत मांगने की आदत ऐसी पड़ी है कि पाकिस्तान ने सर्जिकल स्ट्राइक के भी सबूत मांग लिए थे। जब लाशें गिननीं पड़ीं, स्थानीय मीडिया में सबकुछ छप गया तब भी कभी सर्जिकल स्ट्राइक को स्वीकार करने पाकिस्तान सामने नहीं आया।

भारत ने पाकिस्तान की टीम को पठानकोट बुलाया। हमले की जांच की इजाजत दी। इससे ज्यादा भी कोई देश क्या कर सकता है? मगर, नतीजा क्या हुआ? पाकिस्तान को सबूत नहीं मिले। कहते हैं कि जो जागकर भी सोया होता है उसे जगाया नहीं जा सकता। उस पर एक्शन ही लेना होता है। चाहे आप बाल्टी भर पानी डाल दीजिए या कि चार बेंत लगाकर उसे जगा दीजिए। पाकिस्तान के लिए इसी बर्ताव की ज़रूरत है।

हमला सहकर भी भारत ने अब तक युद्ध की भाषा नहीं बोली है मगर हमला कराने के बावजूद पाकिस्तान युद्ध की भाषा बोल रहा है। यही भारत और पाकिस्तान में फर्क है। हमला हुआ तो नुकसान दोनों पक्ष का होगा, यह बात तय है मगर अब पाकिस्तान की सीमा मिट जाएगी इस बात को भूल रहे हैं इमरान ख़ान। अच्छा होता अगर वह इस धमकी को अपनी सेना के लिए बतौर सलाह सम्भाल कर रखते। क्योंकि, इसी में पाकिस्तान की भलाई है।

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