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कांग्रेस में जान फूंकेगी प्रियंका?

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प्रियंका वो नाम है कांग्रेस में जान फूंक दे सकती है। कांग्रेसी कहते रहे हैं कि अगर लक्ष्मण है कांग्रेस, तो संजीवनी बूटी है प्रियंका गांधी। जब कभी भी कांग्रेस संकट में होती है कांग्रेस के कार्यकर्ताओँ का नारा होता है- प्रियंका लाओ देश बचाओ। अब प्रियंका आ चुकी हैं। कांग्रेस की महाचिव बनकर। पूर्वी यूपी की कमान सम्भालने वाली हैं।

प्रियंका के आते ही जो बदलाव दिख रहे हैं उस पर नज़र डालें तो देश भर में कांग्रेस के कार्यकर्ताओँ में उत्साह है, ‘प्रियंका लाओ’ का नारा बुलन्द हो रहा है, कांग्रेसी अपने-अपने इलाके से प्रियंका को चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं, मीडिया कवरेज में प्रियंका छाई हुई हैं और इस तरह कांग्रेस का मीडिया कवरेज बढ़ गया है।

राहुल गांधी ने तीन राज्यों में कांग्रेस की पताका लहराकर 2014 से पहले जो समां बांधी है उसमें प्रियंका कुछ न कुछ योगदान करेंगी, ये तय है। चूकि प्रियंका को पूर्वी यूपी की कमान दी गयी है और पश्चिमी यूपी ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंपा गया है जबकि गुलाम नबी आज़ाद को यूपी से बाहर हरियाणा भेज दिया गया है तो इसके संकेत भी साफ हैं।

प्रियंका के बहाने कांग्रेस के संकेत

कांग्रेस अब अपने दम पर उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने वाली है।

एसपी-बीएसपी गठबंधन और बीजेपी के बीच खड़ी होने वाली है।

छत्तीसगढ़ का संदेश देने के लिए कांग्रेस तत्पर नज़र आ रही है।

त्रिकोणात्मक संघर्ष में भारी पड़ेगी कांग्रेस- ऐसा संकेत देने वाली है।

प्रियंका गांधी का प्रभाव जाति-धर्म से ऊपर रहता है। वह एसपी-बीएसपी गठबंधन के वोटरों में सेंध लगाएंगी और सवर्णों के बीच कांग्रेस को उसका जनाधार भी वापस दिलाएंगी। अगर ऐसा कर पाने में प्रियंका सफल रहती हैं तो उत्तर प्रदेश के 18 फीसदी मुसलमान भी कांग्रेस और एसपी-बीएसपी गठबंधन में अपनी वरीयता तय करते समय प्रियंका से प्रभावित रहेंगे।

एक नज़र यूपी मे जातिगत वोटों पर डाल लेना भी जरूरी लगता है।

यूपी में कौन है कितना

OBC                      34.7%

SC                         20.5%

ब्राह्मण                     11%

ठाकुर                     7.6%

वैश्य                       4.3%

मुसलमान               19%

अन्य                       2.9%

एसपी-बीएसपी मानते रहे हैं कि कांग्रेस वोट काटेगी तो बीजेपी की। हो सकता है कि वह अब भी खुश हो कि अब बीजेपी का नुकसान ज्यादा होगा। मगर, यह भी सच है कि राष्ट्रीय राजनीति में जब वोट देने का वक्त आता है तो मतदाता क्षेत्रीय दलों को प्राथमिकता में नहीं रखते। अब बीजेपी के विकल्प के तौर पर एसपी-बीएसपी के साथ-साथ कांग्रेस भी गम्भीरता के साथ दिख रही है तो मतदाताओं के तेवर में भी बदलाव होंगे। मगर, ये बदलाव एसपी-बीएसपी को कितना नुकसान पहुंचाएंगे, इसका गणित वो सोचें। फिलहाल कांग्रेस बम-बम है। उसे प्रियंका के रूप में संजीवनी बूटी मिल गयी है। वह बीजेपी और एसपी-बीएसपी गठबंधन दोनों के लिए चुनौती बनने को तैयार दिख रही है।

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