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राजस्थान में वसुंधरा का जाना तय

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राजस्थान में चुनाव प्रचार ख़त्म हो जाने के बावजूद यह पता नहीं चल पाया कि बीजेपी या कांग्रेस ने किन मुद्दों पर वोट मांगे। दोनों पार्टियां एक-दूसरे से हिसाब मांगती रह गयी। कांग्रेस का हिसाब मांगना तो बनता था, क्योंकि वह सत्ता से बाहर थी। मगर, बीजेपी ने कांग्रेस से उनके पिछले कार्यकाल का या फिर चार पीढ़ियों का हिसाब मांगकर हिसाब देने की जवाबदेही ही ख़त्म कर दी।

राजस्थान चुनाव प्रचार में इस बार बीजेपी को दो तरफा जवाब देना था। राज्य के साथ-साथ केन्द्र सरकार में बीजेपी की सरकार थी। मगर, चुनाव प्रचार के आखिरी दिन भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाषा जवाब देने वाली नहीं दिखी। वो यही कहते रहे

पहले 4 पीढ़ी का हिसाब दो, तब 4 साल का जवाब मांगो

राजस्थान के बाहर देखने-सुनने में पीएम मोदी की शैली आक्रामक जरूर लग रही होगी, लेकिन राजस्थान की जनता के लिए यह उनकी उम्मीदों पर पानी फेरने वाली रही।  ये राजस्थान की जनता ही थी जिसने 2013 में नरेंद्र मोदी के कहने पर कांग्रेस की गहलोत सरकार को उखाड़ फेंका था। ये वही जनता है जिसने 2014 के आम चुनाव में अपने प्रदेश की 25 में से 25 सीटें उठाकर नरेंद्र मोदी की झोली में डाल दी। नरेंद्र मोदी और बीजेपी के लिए ऐसा उदाहरण देश भर में कहीं नहीं मिलेगा। आज उसी जनता को जवाब देने से कतराते दिखे नरेंद्र मोदी।

विगत विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 1 करोड़ 39 लाख 39 हज़ार 203 वोट मिले थे। प्रतिशत रूप में यह 45.17 फीसदी था। हालांकि 5 सीटों पर बीजेपी की ज़मानतें भी ज़ब्त हुई थीं।

इस मुकाबले में अगर कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस ने भी सभी सीटों पर चुनाव लड़ा। उसे महज 21 सीटों पर जीत हासिल हुई। हालांकि वोट कांग्रेस को भी 1 करोड़ से ज्यादा मिले थे। उसे मिले वोटों की संख्या थी 1 करोड़ 20 लाख 4 हज़ार। प्रतिशत रूप में यह था 33.07. कांग्रेस के 18 प्रत्याशियों की ज़मानतें ज़ब्त हुई थीं।

राजस्थान में पानी की कमी बड़ी समस्या

राजस्थान पानी के संकट से जूझ रहा है। वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह ने हाल में राजस्थान का दौरा कर लिखा है कि पानी के संकट से जूझते लोगों को देख लेने के बाद उन्हें एक बाल्टी पानी से नहाने में अपराध बोध हो रहा था। संकट सिर्फ पानी का नहीं, राजस्थान में बेरोज़गारी तेजी से बढ़ी है। युवाओं में आक्रोश है। किसानों का दर्द भी गहरा है। मगर, ये मुद्दे सत्ताधारी दल को नहीं दिखे। न वसुंधरा ने अपनी ज़ुबान पर ये मुद्दे लाए, न नरेंद्र मोदी ने।

कांग्रेस की ओर से निश्चित रूप से ये मुद्दे उठाए गये, लेकिन उसका महत्व इसलिए नहीं है क्योंकि वे सत्ता में नहीं हैं। घोषणापत्र में जरूर कांग्रेस ने किसानों के कर्जे माफ कर देने का वादा किया है। हर साल युवाओं को रोज़गार देने का वादा भी पार्टी ने किया है। मगर, ये वादे तो बीजेपी ने भी किए हैं। बल्कि, बेरोजगारी भत्ता देने के मामले में बीजेपी का वादा कांग्रेस से बड़ा है।

सभी पूर्वानुमानों में हार रही है वसुंधरा सरकार

पूरे देश में राजस्थान ही ऐसा प्रदेश है जहां हुए सभी पूर्वानुमानों में कांग्रेस की एकतरफा जीत दिखलायी गयी है। कांग्रेस के लिए कम से कम 115 सीट और बीजेपी के लिए अधिक से अधिक 75 सीटों की भविष्यवाणी सामने आयी है। वहीं कांग्रेस को अधिकतम 142 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है, जबकि बीजेपी की स्थिति ख़राब रही तो वह 56 सीटों पर आ सकती है।

राजस्थान में विधानसभा की कुल 200 सीटों में 142 सीट सामान्य हैं जबकि 33 सीट अनुसूचित जाति और 25 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं।

SC-ST वर्ग में है ख़ासी नाराज़गी

एससी-एसटी वर्ग में इस बार ख़ास तौर से केन्द्र सरकार के लिए नाराज़गी है। दलितों की पिटाई की कई घटनाओं के बाद राज्य सरकार के प्रति दलितों में एक गुस्सा है। चूकि एससी-एसटी की ज्यादातर सीटें बीजेपी के पास हैं इसलिए नुकसान भी सबसे ज्यादा बीजेपी को ही होने की बात कही जा रही है।  बीजेपी को मुसलमानों से भी कोई उम्मीद नहीं है। पार्टी ने सिर्फ एक उम्मीदवार खड़ा किया है। एससी-एसटी के अलावा राजपूतों की भी नाराज़गी बीजेपी के लिए चिन्ता का सबब है। अंत में, ये कहना मुनासिब होगा कि बीजेपी को कांग्रेस नहीं हरा रही है, बल्कि बीजेपी खुद अपनी हार की वजह बनने जा रही है।

 

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